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समय नरीमो संधि
२२ [१९] परमेश्वरी विशल्या सुन्दरीके सुगन्धित चन्दनसे लक्ष्मणकी पूरी देहको मल दिया गया, और उसी समय वह चन्दन रामको भी दिया गया। रामने उसे कपिध्यजियोंके पास भेज दिया।जाम्बवान् ,सुपीक, अंग, अंगद,भामण्डल, हनुमान, विराधित, नल, नील, हरीश, प्रसाधित, गय, गवय, गवाक्ष, अनुद्धर, कुन्द, इन्दु, मृगेन्दु, वसुन्धरा और भी दूसरे-दूसरे निशानवाले रावण पक्षके सामन्तों, जैसे केशरी, नितम्य, सुत, सारण, रवि, कर्ण, इन्द्रजोत. मेघवाहन, यमघण्ट, यमानन, यममुख, धूम्राश्न, दुरानन और दुर्मुख आदिको भी वह चन्दन दिया गया । और भी दूसरे राजाओंको षड् गन्धजल बाँट कर दिया गया । इस प्रकार शीघ्र ही, रामकी समस्त सेना फिरसे नयी हो गयी ॥१॥
[२०] रामकी सेना, संजीवनीके बल और उस पवित्र जलसे जब जीवित हो उठी तो उसमें नयी हलचल मच गयी। वीररससे अधिष्ठित, वीर योद्धा पुलकित होकर उछल रहे थे, पटह, मृदंग बज रहे थे। धवल और मंगल-गीत गाये जा रहे थे 1 खुज्जक और बौने नाच रहे थे। ब्राह्मण यजुर्वेद पढ़ रहे थे । अभिनव गायन हो रहा था, वीणावादक वीणा बजा रहे थे, सबकी एक साथ आँख खुल गयी, वे एक स्वरसे चिल्ला अढे, "रावण कहाँ है” | तब रामने हँसकर कहा, "दुष्ट गीले निशाचर से क्या ?" इसी बीच, दुर्दम राक्षसोका विनाश करने में समर्थ, विशल्याका प्रिय लक्ष्मण यमके मुखसे निकाल लिया गया, और लंकाके विनाशका द्वार खुल गया । यह सुनते ही लक्ष्मणने उसकी ओर देखा । वह शीघ्र कामसे पाहत हो पठा। मानो वह एक शक्तिसे मुक्त हुभा था, और अब अनेक शक्तियोंने उसे घेर लिया हो ॥१-१०॥