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सत्तरिम संधि
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क्या करोगे क्या बिना पंखोंके पक्षी उड़ सकता है, क्या विषविहीन साँप काट सकता है, क्या तेजसे हीन होकर सूर्य तप सकता है, क्या बिना जल के समुद्र उछल सकता है, खीसोंसे सीन हाथी क्या गरज सकता है? राहुसे ग्रस्त होनेपर क्या चन्द्रमा प्रकाश दे सकता है, क्या जल सहित आग जल सकती है, डाल के कट जानेपर क्या पेड़ छाया कर सकता है, क्या व्रतोंका पालन न कर मुनि सिद्ध हो सकते हैं। अच्छी तरह रहकर भी तुम स्वजनों के बिना अकेले क्या करोगे? इसलिए मेरी बुद्धिके अनुसार आज भी सीताको वापस कर दो। राम-लक्ष्मण वापस चले जायेंगे, तुम्हारे 'भाई-बन्धु छूट जायेंगे। तुम्हारा यह राज्य आज भी बच सकता है, रथ, अश्व, गज और ध्वज भी बच जायेंगे और ये तुम्हारे भाई-बन्धु भी चुम्हारे रहें ॥
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[३] मन्दोदरीके मुखसे जो भी शब्द निकले, सभी मन्त्रियों ने उसकी उसी प्रकार प्रशंसा की जिस प्रकार और केतकीको चूम लेते हैं। आबाल-वृद्ध जनसमूह और सभी सामन्तोंने 'जय देवी जय देवी' कहकर उसकी सराहना की। विमलमति वृद्ध मन्त्रियोंने भी हाथ जोड़कर और झुककर उसके वचनोंको सम्मान दिया। उन्होंने कहा, "हे आदरणीये, आपने बिलकुल ठीक कहा है। राजनीति शास्त्र भी इसी बातका निरूपण करता है। वास्तवमें अकुशल लोगोंको कुशल लोगोंसे नहीं लड़ना चाहिए। राजाको अपने शासनमें पूरी दिलचस्पी लेनी चाहिए। शत्रुसेनाको बलशाली देखकर उससे दूर रहना चाहिए। यदि सेना कम (थोड़ी ) हो तो युद्ध कर लेना चाहिए, अगर सेना बड़ी है तो समर्पण कर देना ठीक है, क्योंकि बड़ा राजा छोटे राजाको दवा देता है। इसलिए अब -