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दुसरिम संधि
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को स्त्री वापस नहीं देता" । यह सोचकर बिलखते हुए यज्ञोंने कहा, “हे राम. आप हमारा एक अपराध क्षमा करें। यदि हम दुबारा आयें और आपको अपना मुँह दिखाये तो अपने हाथों हम सबका दमन कर देना " ||१२||
बहरवीं सन्धि
पराकममें श्रेष्ठ अंग और अंगद वीरोंने, जिन भगवान्की जय बोलकर फिरसे लंका नगरीकी ओर कूच किया ।
[१] क्रोधसे अभिभूत तलवार उठाये हुए, बड़े-बड़े विमानोंमें, धवल ध्वजोंसे सजे हुए, पहले-पहल घुसते हुए उन्होंने लंका नगरी देखी जैसे फूल-मालाओं से सजी हुई कोई विलासिनी हो; रावणके घोड़ोंसे भयभीत सूर्यके अश्व उसको लाँघ नहीं पाते। जिसमें मतवाले हाथियोंकी गर्जनासे मेघोंने गरजना छोड़ दिया है, जिसमें सूर्य पह-पहरमें दूर हटता जाता था, क्योंकि वह शूरवीरोंकी उस नगरीके ऊपर से नहीं जा सकता । जहाँ स्त्रियोंके मुखचन्द्रोंसे पीड़ित चन्द्रमा अपना तेज छोड़ देता है। जिसमें नये कमलोंसे बने नये मण्डपों में गरमी नहीं जान पड़ती। हाथियोंकी सूढ़ोंके जलकणों से जहाँ वर्षा जान पड़ती और मन्दजलकी धाराओंसे नदियों में बाढ़ आ जाती, जिसमें घोड़ोंकी टापोंसे उड़ी हुई मणिमय भूमिकी धूल सूर्यकान्ति मणिकी आभासे सूर्य की तरह लगती, मोतियोंके बहाने नक्षत्र समूह, बहुत-से चन्द्रकान्त मणियोंको कान्तिसे चन्द्रमाकी
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