________________
सिसमरिमो संधि
२९७
तेइत्तरवों सन्धि
यह रावण त्रिभुवनमें बेजोड़ और भयंकर वीर था। उसकी आँखें कामदेवके बाणकी तरह पैनी थीं । मंगल तूर्यकी ध्वनिके साथ उसने स्नान के लिए प्रवेश किया।
[१] अपने भवनमें प्रवेश करते ही, उसे नौकर दिखाई दिये । उसने उन्हें तुरन्त अपने अपने घर जानेको छुट्टी दे दी। अपने इने-गिने सेवकोंके साथ रावण स्नानघरकी ओर गया। उसने अपने समस्त आभरण उसी प्रकार हटा दिये, जिस प्रकार दुर्दिनमें दिनकर अपनी सब किरणें हटा देता है। उसने नहाने को धोती ग्रहण की, मानो आदिनाथने 'दया' को ग्रहण किया हो। माताके समान वह अपने गुप्त अंगको ढक रहा था। व्याकरणकी कथाकी भाँति उसने सण्ड सूत्र (?) बाँध रखा था। विशाल वनराजिकी तरह वह पल्लवयुक्त था। उत्तम वारांगनाओंसे वह परिपूर्ण था। विविध मंगिमाओंसे उन्होंने असकी ओर देखा । फिर हर्षसे विभोर होकर वह व्यायामशाला में पहुँचा। वहाँपर मालिश करनेवालोंने उसकी खूब मालिश की। सबेरे तक उसकी मालिश करते रहे। उसका अंग-अंग पसीना-पसीना हो गया। शरीरपर पसीनेकी स्वच्छ (दें ऐसी झलक रही थीं मानो समुद्रने सन्तुष्ट होकर अपने मोती निकालकर दे दिये हों ।। १-२ ।।
[२] फिर उत्तम विलासिनियोंने उसका ऐसा उबटन किया मानो हथिनीने अपनी सूंडसे झार्थीका मर्दन किया हो। इसके बाद सोनेकी करधनी पहने हुए रावण गया। वह ऐसा लग रहा था मानो कनेर कुसुमके किनारे मधुकर बैठा हो, दरवाजे