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वत्त माध
लक्ष्मण ) से सहित थी, मीनकुलकी तरह, दशमुख (रावण और हृदमुख ) से आशंकित थी, नील कमलकी तरह नील और नल ( नीलिमा मृणाल, नल और नील योद्धा ) से शोभित थी, गधम वन मांति कुन्द फूल विशेष, इस मामका योद्धा) से वर्द्धनशील थी, निशा-आकाशकी भाँति तारा और इन्दु (तारे चन्द्रमा और इस नामके योद्धा) से युक्त थी। और पास पहुँचनेपर उसे दरबार दिखाई दिया, उसे लगा, जैसे समुद्रमन्यनकी तरह उससे रत्न निकल रहे हो, प्रलय सूर्यकी भाँति वह दरबार तेजसे दीन था, और सतीके चित्तकी भाँति परपुरुषके लिए एकदम अभेद्य था । दूतने देखा कि राम और लक्ष्मण, अलंकारोंसे शोभित, ऐसे लगते हैं, मानो स्वर्ग से इन्द्र और उपेन्द्र उत्तर आये हों" ||-२०॥
[७] राम और लक्ष्मणने प्रसन्न होकर शोन इस दूनको बुलाया, और सम्मान देकर अपने पास बदिया आसनपर विठा दिया। यह देखकर रावणका दूत कृतार्थ हो उठा। उसने
अत्यन्त विनयपूर्वक रामके सम्मुख निवेदन किया, "हे सीताप्रिय राम, आप सचमुच सैकड़ों देवयुद्धोंमें अडिग रहे हैं, अरे
ओ राम, आप समूची धरतीके प्रतिपालक हैं। आपने मायासुग्रीवका अन्त अपनी आँखों देखा है, अरे ओ राम, आप दुर्दम दानवोंका संहार करनेवाले हैं, अरे ओ राम, आप शत्रुओंकी अंगनाओंको कँपा देते हैं, आप वनावर्त धनुष धारण करते हैं, आप बानरों और विद्याधरोंके परमेश्वर है। आप रावणके साथ सन्धि कर लें, इन्द्रजीत और कुम्भकर्ण को छोड़ दें। इसके बदले में लंकाके दो भाग तीनों खण्ड धरती, छत्र, अश्व, गज, बड़े-बड़े पीठ, उत्तम योद्धा, निधि रत्न, सब कुछका आघा. आधा भाग ले लीजिए, केवल सीला देवीके बारेमें अपनी इच्छा