________________
२५१
एक चरिमो संधि सुन्दर नन्दीश्वर पर्व के समय, लंका नगरी अमरावतीके समान शोभित थी। अविचल और भारी भक्तिसे भरे हुए निशाचरोंने अपने प्रत्येक जिनमन्दिरमें जिनपूजा की ।। १-९॥
[३] घर-घरमें धरतीकी गन्दगी निकाल दी गयी, घर-घरमें प्रतिमाका अभिषेक किया गया, घर-घरमें सूर्य बजाये गये, मानो सिंहसमूह ही गरज रहा हो, घर-घरमें सूर्य किरणोंको रोक दिया गया । ऊँचे वितान और तोरण सजा दिये गये । घर. घरमें सत्कट गन्धसे भरी मालाएँ थीं, घर-घरमें चन्दनका छिड़काव हो रहा था, घर-घरमें मोतियोंको रौंगोली पूरी जा रही थी, घर-घरमें दमनलता नयी नयी फल रही थी, घर-घरमें नयी पुष्पअर्चा हो रही थी, घर-घरमें चर्चरी और दूसरे कौतुक हो रहे थे । घर-घरमें मिथुन परिपोषित थे, घर-घरमें महादानों की घोषणा की जा रही थी, घर-घरमें भोजनकी सामग्री बनायी जा रही थी, मानो घर-घरमें लक्ष्मीके देवता अधिष्ठित हो । दनुका संहार करनेवाले लंका नगरमें, सपरिवार रावणने नन्दीश्वर पर्वका उत्सव, निश्चिन्ततासे मनाया। और फिर अष्टापदको कपानेवाला यह हर्षपूर्वक शान्ति जिनालयकी ओर गया ।। १-९॥
[४] कामदेयके अनके समान नेत्रवाले रावणने वसन्तके अनुरूप क्रीड़ा की । सुन्दर अलंकारोंसे अलंकृत, और प्रसाधनों के सहित सेनासे वह घिरा हुआ था। दर्प हरण करनेवाले अस्त्र खनखना रहे थे | नगाड़ोंसे भरपूर राजकुल गूंज रहा था, जयमंगल और मंगल गीतोंकी घोषणा हो रही थी। निशाचर समूह सन्तुष्ट था। जनसमूह निकलकर धरतीकी रक्षा करनेवाले उस राक्षसके सम्मुख खड़ा हो गया । अहंकार शून्य और परोपकारी बहुत-से धर्मपरायण लोग नहीं ठहर गये। कोई भी