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एक्कुणसप्तरीमो संधि
२२१ विवाहका काम सुन्दर और अच्छा है। इससे स्वास्थ्य, ऋद्धि, वृद्धि और शीघ्र ही संग्राममें सफलता मिलेगी। इष्टा अवसर पर, हे देव, आप पाणिग्रहण कर लीजिए, और देव-मिथुनोंकी भाँति प्रेमक्रीड़ा कीजिए। यह सुनकर कुमार लक्ष्मणने विशल्याका पाणिग्रहण कर लिया । दही, अक्षतके कलश, दर्पण, हविमण्डप, यज्ञवेदी, राँगोली, लालचन्दनका छिड़काव और विप्र, बन्दीजनोंके जयवचनों और नटोंके मनोरंजनके साथ विवाह सम्पन्न हो गया । बत्साह, धवल मंगलगीतों, अत्याइत तूर्यों और शंखों, और उत्सवोंके साथ राजाओंने स्वयं इस अवसरपर अपना-अपना साधुवाद दिया ॥२-५||