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सतसट्टियो संधि
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[१३] कुलदीपक रामने जब यह प्रतिज्ञा की तो सुग्रीवने भी व्यूह-रचना प्रारम्भ कर दी। उसने फौरन मायावी सेना रच दी। वह लक्ष्मणकी रक्षा करनेके लिए स्थित हो गयी । अश्व, गज, रथ और पैदल सैनिकोंसे वह अत्यन्त भयंकर लग रही थी, मानो अति दुर्धर भयंकर जमकरण हो । ऊपर विशाल विमान थे। जो भीतर मणियों और रत्नोंसे सुन्दर थे । उसमें सात विशाल प्राकार ( परकोटे ) थे, जो ऐसे लगते थे मानो नया समवसरण ही हो । साठ हजार मतवाले हाथी थे । प्रत्येक गज पर एक चक्र था । प्रत्येक रथ पर अश्त्र थे और अश्व पर श्रेष्ठ योद्धा । सुग्रीवने अपना व्यूह ऐसा बताया कि उसमें सुराख न मिल सके, मानो वह सघन शब्दोंका किसी सुकवि का काव्य हो । वह व्यूह सबके लिए अत्यन्त भयानक, दुष्प्रवेश्य और ऐसा दर्शनीय था मानो सीता देवीका हृदय हो जो रावणके लिए अडिग अभेद्य था || १ ||
[१४] पूर्व दिशामें यशका लोभी विजय था जो पहले द्वार पर रथ और चक्र सहित स्थित था। दूसरे पर हनुमान्, तीसरे पर दुर्मुख, चौथे पर कुन्द और पाँचवें पर दधिमुख, छठे पर मन्दहस्त, सातवें पर गज । पहले उत्तर द्वार पर अंग था। दूसरे पर अंगद, तीसरे पर नन्दन, चौथे पर कुमुद, पाँचवें पर रतिवर्धन, छठे पर चन्द्रसेन ( जिसका चेहरा तमतमा रहा था ), सातवें पर दानव संहारक चन्द्रराशि । पहले पश्चिम द्वार पर शशिमुख, दूसरे पर सुभट दृढ़रथ था । तीसरे पर गवय, चौथे पर गवाक्ष, पाँचवें पर तार, और छठे पर विराधित था । परन्तु जो बुद्धिमें सबसे बड़ा था और जिसकी पताकामें भयंकर रीछ अंकित था, पेड़ोंके अब लिये जम्बु सातवें दरवाजे पर स्थित हो गया || १८||