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सत्तसहिमो संधिः जाम्बवन्तको समझाया। रावणके उपलनको उजाड़नेवाले पबन और अंजनाके पुत्र सुभट हनुमानको धीरज बँधाया, नल-नील और भामण्डलको धीरज बँधाया। दृढ़रथ, कुमुद, कन्द और शशिमण्डलको धीरज धंधाया। रलकेशी और रतिवर्धनको समझाया, अंगद, अंग, तरंग और विभीषणको धीरज बंधाया। चन्द्रराशी और, भामण्डलको धीर बँधाया, हंस, वसन्त, सेतु ओर वेलन्धरको धीरज अँधाया। करुण, रसाधिप, दधिमुख, गषय, गवाक्ष, सुसेन और विराधितको धीरज बँधाया, तरल, तार, वारामुख, कुन्द, महेन्द्र, इन्द्र और इन्द्रायुधको धीरज बँधाया, और भी जो उस समय रो रहा था, राम उन सबको धीरज दे सके । परन्तु एक रावण था कि जिस पर वह अपना क्रोध कम नहीं कर सके ॥१-९।।
[१२] एक तो विरहको ज्वालासे उत्तेजित होकर और दूसरे कोपानिलसे क्षुब्ध होकर रामने प्रतिज्ञा की कि मैं अपने हाथसे शत्रुको मायासुप्रीवके पथ पर भेज कर रहूँगा। चाहे इन्द्र उसकी रक्षा करे, विश्वपूज्य विष्णु, शिव और ब्रह्मा उसे बचायें 1 चाहे यम, धनद और कृतान्त उसकी रक्षा करें। चाहे शिवका पुत्र स्कन्ध उसे बचाना चाहे। चाहे पवन या वरुण उसे बचायें, चाहे चन्द्र, सूर्य और अरुण, चाहे वह कलिकालकी शरणमें चला जाय, अथवा नम, थल या पातालमें छिप जाय । चाहे वह पहाड़की गुफामें प्रवेश कर ले अथवा सर्पराज कृतान्तके मुखमें प्रवेश करे । कल कुमारके अन्त होते तक एक पलके लिए भी यदि दशानन जीवित रह गया तो मैं हे किष्किन्धा नरेश ! अपने-आपको जलती ज्वालामें होम दूंगा ॥१-||