________________
एकुणसत्तरीमो संघि
२ . [७] उस नर्मदा नदीको भी, उन्होंने दूरसे छोड़ दिया। वहाँसे वे पलभरमें उज्जैन पहुँच गये । वहाँ जनपद महामेघकी भांति सधन ( धन और धनुष ) था जो रामपर लक्ष्मणकी ही भाँति स्नेह रखता था, जो धनुर्धारीके संग्रह के समान गुणोंसे युक्त था, जो कामदेवही जरद कर { *ग और देना ) सिर ( अंग और श्री ), तनु (शरीर) को कुछ भी नहीं गिनता था। उन्होंने खोटी महिलाकी भाँति, उज्जैन नगरीको भी छोड़ दिया। फिर चे, पारियात्र और मालव जनपद पहुँचे। वह मालव जनपद, राजाकी भाँति,-धन्य (जन और पुण्य ) से युक्त था। ईख ही उसका धन था। कामदेवकी भाँति वह कुसुममाला धारण करता था। उसे पार कर, वे यमुनाके किनारे जा पहुँचे, जो आर्द्र मेघोंके समान श्यामरंगकी थी। जो नागिनकी भाति काली थी, और विष (जल-जहर) से भरी हुई थी, जो ऐसी जान पड़ती थी, मानो धरतीपर खींची गयो काजलकी लकीर हो। उसके थोड़ी ही देर बाद, गंगा नदी पन्हें दीख पड़ी, उसको तरंगें जलसे एकदम स्वच्छ यी, चन्द्रमा
और शंखके समान जो शुभ्र थी। मानो वह कह रही थी, दोनोंमें, जयसे कौन गौरवान्वित होती है, आओ इसी ईर्ष्यासे लड़ लें। या वह ऐसी लगती थी मानो समुद्र ठपूर्वक हिमालयको ध्वजा ले जा रहा हो ।।१-६॥
[4] थोड़ी ही देर बाद, उन्हें अयोध्या नगरी दिखाई दी, उन्होंने उस नगरी में इस प्रकार प्रवेश क्रिया, मानो सिद्धिनगरमें सिद्धिने प्रवेश किया हो। वहाँ जोड़े आपसमें रतिक्रीड़ा कर रहे थे, पथिकोंकी भाँति, उनके पैर ऊँचे थे, अविधिकी भाँति, जो आलिंगन चाह रहा था, गिरिवरके शरीरकी भाँति, जिसमें सब कुछ था, अविचल राज्यकी भाँति, जिसके पास सभी