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छाष्टिमो संधि का नाम ले रहे थे। तीरोंकी बौछारसे आसमान भर गया । पहर-पहरमें मुखकमल खिले हुए दिखते थे। इसी अन्सरमें अनेक स्थानोंका भ्रमण करने वाले रामने शत्रुको छह बार रथहीन बना दिया। पहला रथ था, जिसमें गधा जता हुआ था, दूसरे रथमें हर्षोन्मद अष्टापद था। तीसरा रथे ऊँचे अश्वसे चंचल दिखाई दे रहा था, चौथा भयंकर गर्जना करने वाले हाथियोंसे युक्त था । पाँचवे रथमें उत्तम सिंच जुते हुए थे, और छठेमें सैकड़ों सिंह थे। नूपुरोंसे मुखर, वाहनोंसे चंचल उस निशाचर सेनामें अडिग सफेद पताकाएँ थीं । परन्तु रामने खोदे पुत्रकी भाँति छहों रथवरोको व्यर्थ सिद्ध कर दिया।र-१०॥
[१४] इस प्रकार रामने छः रथ, छः धनुष और छः छत्र मिटीमें मिला दिये । परन्तु विद्याधरोंके राजा रावणने तब भी पीठ नहीं दिखायी। दोनों एक-दूसरेके प्रति ईर्ष्यासे भरे थे, दोनों ही पौरुष और साहसमें समान थे। दोनों सैकड़ों युद्धों में अडिग रह चुके थे। दोनों ही जिननामको नमस्कार करते थे। दोनों ही वानरों और निशाचरोंकी सेनाके स्वामी थे, और दिग्गजोंकी भाँति दूसरे महागजोंके स्वामी थे । वे न एक दूसरे को जीत पा रहे थे और न स्वयं ही जीते जा रहे थे। इसी बीच सूर्यास्त हो गया। तब रामने रावणको मना किया कि अन्धकारमें महायुद्ध कैसे सम्भव होगा न तो तुम, न मैं, कोई भी दिखाई नहीं देगा। इसलिए योद्धा अपने अपने घरको जाँय | यह सुनकर लंका नरेशने युद्ध बन्द कर दिया और कोलाहलके साथ अपने ठिकाने चला गया। श्रीराम उस स्थान पर पहुँचे जहाँ शक्तिसे आहत लक्ष्मण घराशायी थे 1 लक्ष्मणको देखकर, गजशुण्डके समान बड़ी-बड़ी थाहुओंवाले, अपने हाथोंसे वे अपना सिर पीट रहे थे ।।१-१ना