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सप्तसटिमो संधि
हे लक्ष्मण, तुम कृतान्तके यहाँ नियुक्त हो गये । कुलपुत्री जयश्री को तुमने कैसे छोड़ दिया। जमण, सुन्धान पद धरती सूनी है। सीता दहाड़ मार कर रोने लगी। हे लक्ष्मण, कल जो एक महान् राजा थे, उन राषवको आज कैसे अकेला छोड़ दिया ? अपने भाई और स्वजनोंसे दूर, दुःखोंकी पात्र सब प्रकारकी शोभा-श्रीसे अन्य मुझ-जैसी दुःखोंकी भाजन इस संसार में कोई भी स्त्री न हो। ॥१-२||
[८] ठीक इसी अवसर पर देवताओंको सतानेवाला रावण अपने सामन्तोंकी खोज कर रहा था कि देखू कौन मरा है और कौन जीवित है ? संग्राम में किसकी भिड़न्त किससे हुई । मतवाले हाथियोंके दाँतोंसे कौन विदीर्ण हुआ और कौन तलवारके प्रहारसे आहत हुआ ? कौन तीरोंके आघातसे जर्जर हुआ और कौन कर्णिका और खुरपेसे काटा गया? इतने में किसी एकने कहा, "आदरणीय रावण, सचमुच आप पवन, कुबेर और वरुणको सतानेवाले हैं ? कुम्भकर्ण आज तक वापस नहीं आया है, और मेघवाइन भी आनेमें देर कर रहा है। इन्द्रजीतके बारेमें भी कोई बात सुनाई नहीं दे रही है? और न ही महाकाय सिंह नितम्बके बारेमें ? जम्बूमाली और यमघण्ट भी नहीं दिखाई देते। क्या बतायें सेनामें एक भी बादमी दिखाई नहीं देता। जो-जो युद्धमें भिड़ने गये थे वे सब काम आ चुके हैं, अब इमारा पक्ष नष्टप्राय है। आप जैसा ठीक समझें कृपया वैसा करें॥१-२॥
[२] यह सुनकर रावण इस प्रकार काँप उठा मानो उसके वक्षमें शूल लग गया हो। राजा रावण अपना मुख नीचा करके रह गया। मानो हिमाइत शतदल हो ? गद्गद स्वरमें ज्याकुल होकर वह रोने लगा, उसकी आँखोंसे आँसुओंकी