________________
सत्तसहिमो संधि विघ्न एवं वेलाक्ष भी रोये । नल और नील राजा मुक्त कण्ठ रोये, एवं जम्बु, रम्भ, कुमुद, कुन्द और इन्दु भी रोये । माहेन्द्र और महेन्द्र भी रोये और दधिमुख, इदरथ, सेतु और समुद्र भी रोये । पृथुमति, मतिसागर और मविकान्त आदि सामन्त भी मुक्त कण्ठसे रोये । युद्धमें रामके रोदनसे सन्तापकी ज्वाला भड़क उठी । वानरकी सेनामें एक भी ऐसा सैनिक नहीं था कि जो मुक्त कण्ठसे न रोया हो ॥१-६॥
[.] दुर्दम दानवों की सेनाका संहार करनेवाले रामकी इस अवस्थाका समाचार, किसीने मानसम्मानसे शून्य अभागिनी सीता देवीको बता दिया। उनके नितम्ब और उर भारी थे, परन्तु शरीर दुबला-पतला था। रामको देखनको तीन उत्कण्ठा उनके मनमें थी। एकने कहा, "सीतादेवी लो बैठी क्या हो, सीता, लो ये गहने । सीता सीता आँज लो अपनी आँखें । सीता सीता बोलो मोडे वचन । सीवा सीता हर्षवधावा करो। सुग्रीवकी सेना हार कर वापस हो गयी। लो यह दर्पण और देखो उसमें अपना चेहरा । और फिर दशवदनका मुख चूम लो । रावणकी शक्तिसे आहत होकर कुमार लक्ष्मण, शायद ही अब जीवित रह सकें। और सम्भवतः पराभवके अपमानसे दुःखी होकर राम भी प्राणोंको तिलाञ्जलि दे दं॥१-८॥
[७] यह सुनकर, सीता देवी मूद्धित होकर गिर पड़ी। हरिचन्वनके छिड़कनेपर उनकी मूर्छा दूर हुई। चेतना आते ही, वह रोती हुई उठी-हे दुष्ट खल और अभागे भाग्य, लक्ष्मणका अन्त हो गया और रावण जीवित है, तुम्हारा हृदय क्यों नहीं टूट-फूट जाता ? अभाग्यशील छिन्नमस्तक देव, इसमें तुम्हारा कौन-सा मनोरथ पूरा होगा ? हे कृतान्त तुम्हारी इसमें कौन-सी शोभा है कि एक लक्ष्मी वैधव्यको प्राप्त करेगी।
अन्त हो हुई उठी हैदनको मुर्छा दूर