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सहिमो संधि
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लगा । विजयके नगाड़े बज उठे। निशाचरोंकी बस्तियाँ भाग्यसे परिपूर्ण थी । वर-घर में सोहर गीत गाये जाने लगे । परन्तु लक्ष्मण शक्तिसे आहत होने से वह धरतीपर अचेत होकर गिर पड़ा। वानर सेना एकदम व्याकुल हो उठी। शुभ लक्षणोंसे युक्त वह अपने गुणगणोंसे परिपूर्ण थी। भ्रमर कज्जल और कुवलयके अनुरूप थी। वह हिरन कुलकी तरह अत्यन्त दुःखी थी । लक्ष्मणके शोककी मात्रासे राम मूर्छित हो गये । जल, चन्दन और चमरकी हवासे किसी प्रकार, कठिनाईसे उनकी मूर्छा दूर हुई ||१२||
[३] बलभद्र राम विलाप कर रहे थे, "हे लक्ष्मण कुमार और भाई, उपेन्द्र दामोदर हे कृष्ण असून, हरि कृष्ण विष्णु नारायण, केशव अनन्त लक्ष्मीघर, हे गोविन्द जनार्दन महीधर, हे गम्भीर नदीको रोकनेवाले, हे सिंहोदरके घमण्डको चूर-चूर करनेवाले, हे लक्ष्मण, तुम कहाँ हो ? तुमने वर्णको अभय बचन दिया था। तुम कल्याणमाला के आश्वासन हो, तुमने रुद्रभुक्तिका निवारण किया था। तुमने बालिखिल्यको सहारा दिया था। तुमने कपिलका मानमर्दन किया था। तुम वनमालाके नेत्रोंके लिये आनन्ददायक हो । तुमने अरि मनके मानको भग्न किया था। तुम जितपद्मा और शोभाके लिए आनन्ददायक थे । अरे तुमने महाऋषिके उपसर्गका विनाश किया था, और जंगली हाथी को सतानेवाले हो, अपने तलवार रूपी रत्न का तुम्होंने उद्धार किया था। शम्बुकुमारके विनाशको तुमने अपनी आँखोंसे देखा है । अरे तुमने खरदूषणके चमड़ेको खूब गया है। तुमने सुग्रीव के मनोरथको पूरा किया है। अरे तुमने फोटिशिला उठायी थी। और तुमने समुद्रावर्त धनुष अपने हाथसे बढ़ा दिया था। विज्ञाप करते