________________
सड़सठवीं सन्धि लक्ष्मणके. शक्तिसे आहत होनेपर, राधणने लंकामें प्रवेश किया। इधर राम अपने भाईका मुख देखकर, फूट-फूट कर रोने लगे। रावणकी शक्तिसे लक्ष्मण उसी प्रकार आहत हो गया, जिस प्रकार अध्ययनकी क्षमता द्वारा, दूसरेके द्वारा रचित अन्य समझमें आ जाता है, जैसे दुष्टको वचनोक्तियोंसे सजन आहत हो उठता है, जैसे जिनशासकी उक्तियोंसे दूसरेके सिद्धान्त अन्य खण्डित हो जाते हैं, जिस प्रकार तीन गुप्तियोंसे विषयासक्त मुनि वशमें कर लिये जाते हैं, जैसे सभी विभक्तियाँ शब्दको अपने प्रभावमें ले लेती हैं, जैसे सुन्दर गायत्री छन्द छन्दोंको अपने प्रभावमें रखता है, जैसे पत्रके गिरनेसे पहाड़ टूट जाता है, जैसे बहती हुई रेवा विन्ध्याचलको लाँघ जाती है, जैसे बिजली मेघोंमें चमक उठती है और जैसे गंगा नदी समुद्र में जा मिलती है उसी प्रकार मानो युद्धदर्शनसे वंचित दिनको रातने हटा दिया । न उसने रावणका कटा हुआ सिर देखा, और न रघुनन्दनकी विजय ही। लक्ष्मणके वियोगसे दुःखी सूर्य धीरे-धीरे अस्त होने लगा ॥१-II
[२] जब आकाशके कुसुमके समान सूर्यका अस्त हो गया और जब रातरूपी दुष्टाने बेचारे विनका अतिक्रमण कर दिया, तो सन्ध्यारूपी निशाचरी, सब ओर फैल गयी। अन्धकार म्याहीके समूह के साथ बिखर गया । कंचुकी और स्वजन शोकाकुल हो उठे। चक्रवाक पक्षियोंका . जोड़ा रो रहा था । युद्धोत्साहसे रोमांचित रावणके चले जाने पर कोलाहल होने