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कादिमो संधि
१५७ कुलकी फौंस, विभीषण तूने मुझ छोड़कर बहुत अच्छे स्वामीका पसन्द किया है, वह बेचारा भूमि निवासी और अकेला है। तुम एक पने और लम्बे नखाँके सिंहको, कि जिसकी पूँछ पीछे उठी हुई है, छोड़कर, एक मामूली हिरनकी प्रशंसा कर रहे हो । सचमुच तुम सोनेके सुमेरु पर्वतको छोड़कर पत्थरको मान्यता दे रहे हो । तेजकी राशि और आकाश लक्ष्मीका आलिंगन करनेवाले सूर्यको छोड़ दिया है तुमने और ग्रहण किया है-जुगनूको। जलचरों और तरंगोंसे शोभित भीषण समुद्रकी जगह तुमने सरोवरको पसन्द किया है। तुम नरक स्वीकार कर, स्वयं ही शाश्वत शिवसे वंचित हो गये। तुमने जिन भगवानको छोड़ दिया और खोटे देवकी पूजा की, जिसका कोई नाम तक नहीं जानता, विभीषण, तुम उसकी शरणमें गये । शत्रुसे मिलकर तूने जिस प्रकार, मेरा खम्भा उखाड़ लिया है, उसी प्रकार तू युद्ध में आगे बढ़ । मैं भी उसी प्रकार अभी आघात देता हूँ ॥१-१०॥
[७] प्रचण्डतम वीरोंको सतानेवाले विभीषणने गुस्से में आकर रावणको जी भर फटकारा। उसने कहा-'सच है कि तुम देवताओंमें भी श्रेष्ठ थे, परन्तु इस समय, खोटे मुनिकी तरह तुच्छ हो । सच है कि तुम कभी एक श्रेष्ठ सिंह थे, परन्तु अब तुम एक दोन,हीन आनतमुख हिरन समूह हो। सच है, कि किसी समय तुम एफ प्रचण्ड मेरु पर्वत थे, परन्तु इस समय एक गुण हीन पहाड़ खण्ड हो । सप है कि किसी समय तेजस्वी सूर्य थे, परन्तु इस समय तुम एक टिमटिमाते जुगनू से अधिक महत्व नहीं रखते। एक समय था जब तुम एक प्रमुख समुद्र थे, परन्तु इस समय तो तुम गोखुरके बराबर हो। सच है किसी समय तुम एक श्रेष्ठ सरोवर थे, परन्तु इस समय