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छासहिमो संधि
१६. भासुर और अंग, मय, अंगद और महोदर, कुमुद, महाकाय, शार्दूल और यमघंट, रम्भ और विधि, मालि और सुग्रीव आपसमें एक दूसरेसे जाकर भिड़ गये। तार, मारीच, सारन और सुसेन सुत और प्रषण्डाली, संध्याम और दधि-मुख भी आपसमें इन्द्वयुद्ध करने लगे। और भी दूसरे राजा जो विश्व में एकसे एक प्रमुख थे, आपसमें भिस गये। इन सब राजाओंकी गिनती भला कौन कर सकता है ।।१-१२||
२] एकने दूसरेको ललकारा, "मर मर सम्मुख खड़ा हो ।" किसीने किसीसे कहा, "युद्धमें अपना रथ हॉक ।" किसीने फिसीको अपने महान् तीरोंसे इस प्रकार ढक दिया, मानो दुष्कालने सुकालको ढक दिया हो।" किसीने किसीको वक्ष को आहत का. दिगा। कोई आइत होकर घरतीमण्डल पर गिर पड़ा। किसीने फिसीका धनुष तोड़ दिया, मानो वह स्वयं अधोमुख होकर गिर पड़ा हो ।" किसीने किसीका कषच नष्ट कर दिया, और उसे पलिकी तरह दसों विशाओंमें बखेर दिया। किसीने फिसीका महाध्वज का हाला मानो उसका मव, मान और अहंकार ही नष्ट कर दिया हो किसीने हाथीके दाँत उखाड़ लिये मानो अपना यश ही धुमा दिया हो। किसीने शत्रुके रमवरमें इलचल मचा दी, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गरुण नागलोकमें इसबड़ी मचा देवा है। किसीने किसीका सिर इस प्रकार काट दिया, मानो अपराधरूपी पृक्षका फल तोर लिया हो किसीने युद्ध में शत्रके हृदयको ढाढस बँधाते हुए कहा, “जीवन यमको, आघात वक्ष को और सिर स्वामीको अर्पित करूँगा ॥१-१०॥
[१०] किसीने नरकरोंसे पूजनीय प्राप्तिविद्या छोड़ी। किसी ने गर्जन करती हुई मातंगी विधा और किसीने सिंहविद्या।