________________
एकसट्टिमो संधि [७] अपनी टेढ़ी भौंहोंसे अत्यन्त भयंकर एवं कठोर दोनों सेनाएँ एक दूसरे पर प्रहार करने लगीं। रक्त रूपी जलसे अनुरंजित दोनों सेनाएँ सा लग रही थी मानो रक्तकमलका वन खिल उठा हो। इसी बीच जनमनको अच्छी लगनेवाली देवबालाओंमें झगड़ा होने लगा। एक सुरवाला बोली, "हला बासन्तदत्ता, वसन्तलेखा, कामसेना, कामलखा, कुसुम, मनीहारी अनंगा, चित्रांगा, घरांगना और वरांगा, तुम मुनो, युद्ध में जो यह सुभट दिखाई देता है, जिसकी देह सोनेकी खुरपीसे कट चुकी है। तुम यह मुझे दे दो, और अपने लिए मिल-जुल कर दूसरा योद्धा देख लो। एक और दूसरीने, जिसका शरीर हर्षसे खिल रहा था, कहा “हाथीके दाँतमै लगकर जिसने अपने आपको घायल कर लिया है, ओ पगली दौड़, वह मेरा स्वामी है"॥१-॥
[८] सुरबालाओं में इस प्रकार बातचीत हो ही रही थी कि रामकी सेनाने युद्ध में समूची रावण सेनाको परास्त कर दिया उसके हथियार खिसक गये, और सभी साधन नष्ट हो गये । श्रेष्ठ मनुष्य अपना कातर मुख लिये हाथ मल रहे थे । अश्व दुखी थे। रथ मोड़ दिये गये थे। छत्र गिर चुका था। ध्वजाएँ अस्त-व्यस्त थीं। भयंकर आघातोसे गजघटा बौखला गयी । शत्रसेनाको नष्ट होते देखकर रामकी सेनामें कोलाहल होने लगा। देवबालाओंमें दुबारा बातचीत होने लगी । एक ने कहा "जिस सेनाके बारेमें तुम कह रही थी कि उसके समान दूसरी नहीं हो सकती, वही सेना नष्ट होने जा रही है। वह ऐसी दिखाई दे रही है जैसे प्रचण्ड पवनने उपवनको उजाड़ दिया हो।" या मानो किसी दुष्टकी संगतिसे कोई अच्छा कुटुम्ब बर्बाद हो गया हो, या खोटे मुनिका मन