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उसष्टिमो संधि
11 नीलकमलोंने वेध दिया हो। सब हनुमान्ने भी अर्धचन्द्र छोड़ा, यह इतना लम्बा था, मानो समास दण्ड हो। उससे समर्थ सिंह सहसा उत्तेजित हो उठे । वे सिंह जो मतवाले हाथियोंके नगमायलोंके मोसियोंली दुता रखते हैं। समस्त सेना आपस में भिड़ गयी । गज अश्व और नरवर सब झुक गये । हठी हुई पूंछों वाले सिंहोंकी सेना एक दूसरेके लिए एक दूसरेको कवलित कर रही थी। भयभीत शरीर वह नष्ट हो रही थी और एक दूसरे पर लोट-पोट हो रही थी ॥१-६॥
[१४] जब समूची सेना भयभीत हो उठी तो हनुमानको जाकर दशाननसे भिड़ना पड़ा । उसके रथपर सिंह एवं पताकाओंपर बन्दर थे। वे ऐसे जान पड़ते जैसे धूलिकण जाकर चिपक गये हों, हनुमानको लड़ते देखकर रावणने भी अपना कषच उठा लिया । युद्ध जनित उत्साइसे पूरित हृदयमें वह कवष नहीं समाया। मानो पण्डितोंके मध्य भारी स्नेहधारा न समा पा रही हो। बड़ी कठिनाईसे उसने शरीरमें कवच पहन लिया, और सिर पर टोपी पहन ली। धनुष झुका कर उसने उसपर तीर रख दिया, और हनुमान के साथ युद्ध प्रारम्भ कर दिया। ठीक इसी समय महोदरने दोनोंके बीच में अपना रथ आगे बढ़ा दिया। उसने मारतिसे पुकार कर कहा, "ठहरो ठछरो, अपना श्रेष्ठ रथ सम्मुख बढ़ाओ" | यह सुनकर महोदरकी ओर मारुतिने अपना रथ आगे बदा दिया। वे दोनों युद्ध के मैदान में अपने रथोंसे इस प्रकार उत्तर पड़े मानो आकाशमें प्रलयके मेघ हो ॥५-९||
[१५] हनुमान इस प्रकार महोदरसे भिड़ ही रहा था कि इतनेमें जम्बूमालि वहाँ आ धमका। उसने सभी सिंह अपने रथमें जोत लिये । वे सब उद्दण्ड प्रचण्ड और लम्बी पूंछ वाले