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पंचसट्ठिमो संधि थे। उसके साथ माल्यवंत भी आ गया। धुन्धुरु, घूम्राक्ष, कृतान्तदन्य, हालाहल, विद्युत, वियुतजिला, मिनाजन और पथ भी गये । उनकी भुजाएँ अलकके समान थीं। यमघट, यमानन, कालदण्ड, विधि, डिण्डिम, डम्बर, उमर, चण्ड, कुसुमायुध, अर्क, मृगाक, शक, खपिता, अरि, शम्भु, करि, मकर और नक आदि रावणके भयंकर अनुचरोंने हनुमानको घेर लिया, इस प्रकार सबने मिलकर, इनुमान्को घेर लिया और क्षात्रधर्मकी चिन्ता नहीं की । हनुमानका शरीर हर्षसे उछल पड़ा, और यद्धमें अपनी प्रचण्ड भुजाओंसे सबको नत कर दिया ॥१-६॥
पैसठवीं सन्धि हनुमानको निशाचरोंने युद्धमें इस प्रकार घेर लिया, मानो आकाशतलमें बालसूर्यको मेघोंने घेर लिया हो।
[१] शत्रुसेना असंख्य थी, और हनुमान् अकेला या, मानो गअघटाके बीच, सिंह स्थित हो। वीर हनुमान , उन्हें रोकता, ललकारता और सम्मुख जाकर खड़ा हो जाता। जहाँ झुण्ड दिखाई देता, वहीं दौड़ पड़ता। वह गजघटा और सैन्यसमूहको इस तरह नष्ट कर रहा था, मानो बाँसोंके झुरमुटोंमें आग लगी हो । एक रथ होकर भी, वह उस महायुद्धमें उत्साइसे भरा हुआ था । वह कालकी भांति सेनामें धूम रहा था । ऐसा एक भी योद्धा नहीं था जिसका मान गलित न हुआ हो, ऐसा एक भी ध्वज नहीं था जिसमें तीर न लगा हो, ऐसा एक भी राजा नहीं था, जिसका कवच न टूटा-फूटा हो, ऐसा एक भी गज नहीं था, जिसका गपसस्थल आहत न हुआ हो। एक भी ऐसा अश्व नहीं था कि जिसकी लगाम सावित बची हो।