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पंचसविमो संधि कोलाहल होने लगा ! उस अवसरपर, शंकासे भरकर, विभीषणने रामसे कहा, "यदि ये दोनों वीर इस प्रकार चले गये, तो न मैं वचूँगा, न आप, और न दूसरे लोग । रथोंके साथ, न अश्व होंगे और न गज । आप जो ठीक समझें पहले उसका विचार करें । यह सुनकर, बड़े-बड़े योद्धाओंका निर्वाह करनेवाले राम ने मदलोचन व्यन्तरदेवको याद किया। यह व्यन्तरदेव, कुलभूषण, देशभूषण महाराजका उपसर्ग दूर करते समय रामसे मिला था । सन्तुष्ट होकर, उस व्यन्तरदेव ने इन्हें सुन्दर गृहिणीकी भाँति दो विद्याएँ दी, एक गरुड़वाहिनी और दूसरी सिंहवाहिनी ॥१-५॥
[१३] रामने उस गरुड़का ध्यान किया। एकदम उसका आसन कौंप गया। उसने अवधिज्ञानसे जान लिया कि रामने उसकी याद की है। यह सोचकर यह उठा और शीघ्र ही विद्याओंको लेकर भेज दिया। सिंहवाहिनी विद्याके साथ सातसौ सिंह थे और गारुड विद्याके साथ वीनसौ साँप थे । सूर्य और चन्द्रमाकी कान्तिके समान उनके दो छत्र थे। तथा युद्ध में असह्य तीन रत्न भी उसके पास थे। वे दोनों शीघ्र ही रामके पास पहुँच गयीं । इल और मुसलकी भाँति : ये विद्याएँ उन्हें चिन्तन करते ही प्राप्त हुई थी और छोड़ते हो शत्रुओं के ऊपर दौड़ पड़ी। गारुड विद्याको देखते ही, नागपाशके एक क्षणमें टुकड़े टुकड़े हो गये । तब भामण्डल और सुग्रीव अपनी सेनामें वापस आ गये ! लोगोंने हाथ माथेसे लगाकर जय-जय शब्द के साथ, उनका अभिवादन किया ॥१-२||