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पंचष्ट्रिमी संधि
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ओर ले चला। यह देखकर, ताराका पुत्र अंगद भड़क उठा। सैकड़ों युद्धोंमें अजेय अंगदने अपने कौशल से, अनासक्तकी भाँति, शत्रुको वस्त्रहीन कर दिया ।।१-९॥ __ [११] जय युद्ध में कुम्भकर्ण नंगा हो गया, तो देवताओंका समूह, उसे देखकर मजाक करने लगा। रावण भी अन्तःपुर में लाजमें गड़ गया । आँख बचाकर उसने मुख टेढ़ा कर लिया | कुम्भकर्ण अपने वन्न ठीक कर ही रहा था कि हनुमान टूटकर अपने विमानमें पहुँच गया। इस अवसर पर योद्धाको मारनेको साध रखनेवाले विभीषणने राम की जय बोली और कहा,"हे देव, मुझे युद्ध में लड़ते हुए अप दमा । में उसी प्रकार लगा जिस प्रकार सूखे घनमें आग जलती है ! यदि मैंने शत्रुसेनाके मुखपर कालिख नहीं पोती, तो मैं आगमें प्रवेश करूंगा!" इस प्रकार घोषणा कर, निशाचरराज वीर विभीषणने धनुप अपने हाथमें ले लिया। सन्नद्ध होकर बह रथमें बैठ गया और जाकर रावणके पुत्रसे भिड़ गया। वह ललकारत', आक्रमण करता, उनकी निन्दा करता। मेघवाहन और इन्द्रजीत उसे प्रणाम कर रहे थे। उन्होंने कहा, "आप हमारे लिए उसी प्रकार प्रणाम करने योग्य हैं, जिस प्रकार तीनों संध्याओंमें परमजिन बन्दना करने योग्य हैं। जो पिताके समान हो, उसके विषयमें अशुभ सोचना पाप है। आप ही बताइए कि चाचाके साथ लड़ने में कौन-सा यश मिलेगा ।।१-१२॥
[१२] इस प्रकार अपने चाचाके साथ उन्होंने युद्ध नहीं किया । दोनों कुमार वहाँ से हटकर चले गये। एक तो भामण्डलको पकड़कर ले गया, और दूसरा ताराके प्राणप्रिय सुप्रीयको ! कोई भी उन दोनोंका पीछा नहीं कर सका! आकाशमें देवताओंमें