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छासहिमो संधि
१५३ कोई धूर्त विलासिनीके स्तनोंसे जा लगा हो। कोई आकाशमें ही अपने विमानोंसे कूद कर शत्रुओंके सिर काट लेता। नुस प्रकार उस भीषण युद्ध में रक्तकी नदीसे धूल शान्त हो गयी । वैसे ही जैसे दुष्ट सज्जन पुरुपसे शान्त हो जायँ | रावणकी सेनाने रामकी सेनाका मुख फेर दिया मानो तूफानी हवाओंने समुद्र जलकी दिशा बदल दी हो॥१-१०||
[४] निशाचरों के प्रश्नल आघातोंसे पीछे हटायी गयी अपनी सेनाको अभय वचन देकर रामपक्षके नल और नील आकर खड़े हो गये । हस्त और प्रहस्त सेनापति, क्रमशः उनके दो प्रतिद्वन्द्वी थे ? इतने में यहाँ अगनित सेना आ पहुँची उसके पास तरह-तरह के ध्वज और छम्र थे। जयश्री और अश्वोंसे आलिंगित वे दोनों रथमें बैठे हुए थे। चंवर चल रहे थे और योद्धा पहुँच रहे थे। शेर पंजोंके बल खड़े थे और नखोंसे अपना पृष्ठभाग हिला रहे थे । महागजोंका समूह था, जिसकी सुह उठी हुई थी, जो अश्यों के समूहसे शोभित था और जिसमें बहुत-से रथ थे । वे दोनों अपनी सेनामें पहुँचे । वानर ध्वजधारी वे दोनों लड़ने लगे। उन्होंने रावणको सेनाको अपने वाणोंसे तितर-बिसर कर दिया । उसमें एक भी छत्र ऐसा नहीं था जो कटा न हो या जिसके टुकड़े-टुकड़े न हुए हो । शत्रुका एक भी ऐसा चिह नहीं था जो युद्ध में साबित बचा हो, ऐसा एक भी मतवाला हाथी नहीं था कि जिसको घाव न लगा हो। ऐसा एक भी हाथी नहीं था कि जिसके शरीर पर भयंकर आघात न हो। एक भी योद्धा ऐसा नहीं था जो सन्मुख पहुँचनेका साहस करसा । एक भी रथ ऐसा नहीं था जो कि युद्धमें पराङ्मुख न किया गया हो।।१-१५||