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चट्ठियो संधि
रथ भी छिन्न-भिन्न कर दिया।
कर दिये। जब तक वह तीसरा धनुष ले, तब तक उसने दूसरा फिर भी निशाचरको युद्धका
चाब हो रहा था, सो बार तिहीन बना दिया गया, परन्तु वह नहीं माना। आखिरकार उसे तीरोंसे इतना छेद दिया गया कि वह पहाड़की भाँति झुक गया ||१-२॥
[१२] वोदरके इस प्रकार मारे जाने पर, मालि भी नष्ट श्राय हो गया। उसके बाद जम्बूमाल हर्षसे उछलता हुआ युद्ध स्थल पर दौड़कर आया । यह मन्दोदरी देवीका पुत्र था । उसने दानवोंका नाश किया था। उसके रथमें सौ सिंह जुते हुए थे। उनकी दाढ़े विकराल थीं और मुख टेढ़े थे। केश पुलकित हो रहे थे, और नेत्र भयंकर थे। उनकी पूँछ कन्धों को छू रही थी, उनका नख समूह और चरण दण्ड भयंकर थे । इस प्रकार गजघटाको विदीर्ण करनेवाले सिंहोंसे उसका रथ युक्त था। जम्बुमाली, अपने हाथमें धनुष लेकर, हनुमान् के पीछे हाथ धोकर पड़ गये, उस हनुमान पर जिसने नन्दनवनका विनाश किया था। उन्होंने धनुष अपने हाथमें ले लिया । वह धनुष अच्छी स्त्रीकी भांति था। ईर्ष्या से भर कर उस निशाचरने तीर मारा। जनके नेत्रोंको आनन्ददायक हनुमान् का ध्वज, उस तीर से विषे होकर धरती पर गिरा दिया। मानो आकाश रूपी स्त्रीका हार टूट कर गिर पड़ा हो || १ - २ ||
[१३] जब महाध्वज छिन्न-भिन्न हो गया तो उद्धत धनुर्धारी पवनसुत हनुमानने दो बड़े-बड़े लम्बे तीर फेंके जो शत्रुके रथवर की पोठासनके निकट पहुँचे। एक सीरने कवच, दूसरेने धनुष नष्ट कर दिया, मानो जिन भगवान्ने पाप नष्ट कर दिया हो। दूसरा सण्णाह (१) छोड़कर विकट योद्धाने धनुष ले लिया । लम्बे तीरोंसे उसने हनुमान्को घायल कर दिया, जैसे कोमल