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एकसद्विमो संधि
भिड़ गये। दोना समर्थ वे दोनों की आयल कर दिया, और
एक और बाणसे उसने ध्वजको छिन्न-भिन्न कर दिया, और एक दूसरेसे शत्रको वक्ष स्थल में घायल कर दिया । इधर, युद्धभार उठाने में समर्थ वे दोनों नील और प्रहस्त भी आपस में भिड़ गये। दोनों ही ऋद्ध थे, दोनों ही प्रचढ थे, दोनोंकी बाहार पुलकित हो रही थीं। प्रहस्तने नीलको ललकारा, "एक ही आदमी पर प्रहार कर जयलक्ष्मी आलिंगन दे, चाहे रामको या रावणको ॥ १-६॥
[१३] यह सुनकर नील घबड़ाया नहीं। उसने अपना चण्ड वेग तीर उसपर छोड़ा। वह डोरीके धर्मसे छूटकर उसी प्रकार सरसराता चला- जिम प्रकार विंधनशील जगलोर इमोंने पास जाता है । परन्तु रथमें बैठे हुए गजध्वजी क्रुद्ध प्रहस्तने उस तीरके, छह तीरोंसे छह टुकड़े उसी प्रकार कर दिये, जिस प्रकार महामुनियोंने शास्त्रोंमें धरतीको छह खण्डोंमें विभक्त किया है । तब नीलने चौवीस और तीर छोड़े जो एकके अनुकममें दो दो बाण उसके पास पहुँचे। दो बाणोंने उछलते हुए हाथीको घायल कर दिया, दोने सारथीको, और दोने फहराती हुई ध्वजाको छिन्न-भिन्न कर दिया। एक तीरने रथ और दूसरेने कवचको नष्ट कर दिया । एकने धड़को और दूसरेने हृदयको छिन्न-भिन्न कर दिया। उसके दोनों हाथ और पाँव भी फट गये । उसकी मौत निकट आ पहुँची । तीरोंसे कट कर उसके सिर पैर हाथ और वक्षस्थल के छह टुकड़े हो गये । धरती पर बिखरा हुआ वह सुभट ऐसा लग रहा था मानो भूतोंके लिए बलि बिखर दी गयी हो ॥ १-२ ।।।
[१४] जब हस्त और प्रहस्त दोनों मारे गये तो रावण अपना कर-कमल माथे पर रखकर बैठ गया। वह ऐसा लग रहा था मानो दन्तविहीन महागज हो, या मानो दिनमें तेज