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यासटिमो संधि
कल मैं क्षयकालकी वर्षाकी भाँति उठूगा । उसमें मतवाले मेघ डूबते-उत्तराते होंगे, उनकी आवाज दलि, दर्दुर, भेरी और मारु की ध्वनि के समान होगी। प्रशस्न यम कानेदान्ने मागकी जगह उसमें पपीहे होंगे। उसमें हथियारोंको विविध हवाएँ चल रही होंगी। रथवर घनघटाओंका काम देंगे । वह पावस, तलवारोंकी बिजलियोंसे सचमुच भयंकर होगा। छत्र उसमें बगुलोकी कतार की भाँति लगते हैं, और धनुष इन्द्र धनुपकी भाँति । तारोकी बौछार कर मैं शत्रुसेनामें प्रलय मचा दूंगा ॥१-८॥
[११] यह सुनकर लंकेश वहाँ गया, जहाँ पर इन्द्रजीत अपनी पत्नीके साथ था । वह भी अपने भवन में ऐसे गरज रहा था. मानो आकाशमें दुष्ट मेघ गरज रहे हों। वह कह रहा था, "कल मैं राघवके सैनिक बनमें प्रलयकी आग यन जाऊँगा । प्रहरण सिप्पीर और प्रहरोंसे महान उस वनमें दुर्धर मनुष्यों के पेड़ होंगे, जो भुजदण्डोंकी शाखाएँ धारण करता है। जो हथेलियों और अंगुलियोंके कुसुमोसे पूरित है, सुन्धर त्रियों की लताओं और चिल्वफलोंसे युक्त है। छन और ध्वजाएँ जिसमें रूखे पेड़ है। अश्व और गज तरह-तरह के पनचर हैं, और जिसमें शत्रओंके प्राणरूपी पंछी खल रहे हैं। त्रस्त अश्वरूपी हरिण जिस में हैं। और जो राम एवं लक्ष्मणरूपी शिखरोंसे युक्त है । ऐसे उस सघन वनमें मैं कल प्रलयकी आग लगा दूँगा । और समस्त शत्रुरूपी वनको खाक कर दूंगा॥१-२।।
[१२] यह वचन सुनकर, रावण वहाँ गया जहाँ योद्धा कुम्भकर्ण अपने भवनमें था। वह भी अपनी पत्नीसे कह रहा था, "हे हंसगति भानुमती, कल युद्धरूपी आकाशमें ज्योतिष चक्र बन जाऊँगा, एकदम दुर्दर्शनीय, भयंकर और अगम्य ।