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तिसटिमो संधि ने वारुण तीर मारा। इसपर व्याघ्रने 'वायव्य तीर से प्रहार किया । तव उद्दामने महीधर नीर छोड़ा, उसमें सैकड़ों गुफाएँ थीं, और बन्दर आवाजें कर रहे थे। अन्तमें व्याघने, युद्धमें विघ्न उत्पन्न कर उद्दामको मसल दिया और जीते जी उसे कृतान्तकै मुखमें डाल दिया ॥१-१०॥
[१२] इस प्रकार महायुद्धमें लड़ते हुए सभी मारे गये । सन्ताप पथिक अक्रोश दुरित और व्याघ्र सभी आहत हो चुके थे। सूर्य इतना बड़ा दुःख नहीं देख सका, इसीलिए मानो वह डूब गया । अथवा लगता था कि आकाश रूपी वृक्षमें, सूर्य रूपी सुन्दर फल लग गया है । दिशाओंको शाखाओंसे यह वृक्ष शोभित हो रहा था। संध्याके लाल-लाल पत्तोंसे वह युक्त था। बहुविध मेव, उसके पत्तोंकी छायाफे समान लगते थे । प्रह और नमन उसके फूलोका समूह थे। भ्रमर कुलकी भाँति, उसपर धीरे-धीरे अन्धकार फैलता जा रहा था । वह आकाश रूपी वृश बहुत बड़ा था। परन्तु यशकी लोभिन निशा रूपी नारीने उसके मूर्य रूपी फलको निगल लिया । धने अन्धकारने संसारको लैक लिया, मानो उसने दोनों सेनाओंके युद्ध को रोक दिया। दोनों ही सेनाओंके शरीर ढीले पड़ गये, और वे अपने-अपने आवासको लौट आयीं । रावणके आवास पर विजय तूर्य बज रहे थे, जब कि राघवकी सेनाके मुख ऐसे लग रहे थे मानो उनपर किसीने स्याही पोत दी हो ॥१-१०||
[१२] किसी एक वीरने जाकर रामसे पूछा, "हे देव, आप जुन्मन क्यों हैं। मैं शत्रओंके मृग-समूहमें सिंहकी तरह जा घुमूंगा। एक और दूसरा महान योद्धा शत्रुसेनाकी निन्दा कर