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बास द्विमो संधि
[ ४ ] इस प्रकार जिन-जिन निशाचरोंने गर्जना की थी, जिस-जिसने अपना काम छोड़ दिया था, जिन्हें रावणने चाहा और जो युद्धभार उठाने की इच्छा प्रकट कर चुके थे, वहाँयहाँ, प्रसन्नमुख रावणने अपना प्रसाद भिजवा दिया। किसी को कुण्डलोंका जोड़ा दिया, और किसीको कटक, कण्ठा और कटिसूत्र | किसीको मुकुट, किसीको चूड़ामणि, किसीको माला और किसीको इन्द्रमणि, किसीको गजेन्द्र और किसीको अश्व और किसीको हजारों दीनारें दीं। किसीको सोनेके भार से तोल दिया, और किसी औरको लाखोंकी भेंट दे दी, किसीको अपने हाथसे पान दिया, ओर किसीको अपने हाथसे प्रसाधन एवं उत्तम वस्त्र दिये। जब रावणने प्रसाद भेजा तो प्रचण्ड मनुष्य श्रेष्ठोंने अपना सिर कमल झुकाकर अपने बाहु दण्डोंसे उसे स्वीकार कर लिया ||१-||
सठवीं सन्धि
सूर्योदय होनेपर राम और रावणकी सेनाएँ नये प्रसाधनों के साथ तैयार होने लगीं ।
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[१] दशाननने अपनी सेनाके साथ कूच कर दिया । पट, पटह, शख और भेरी की ध्वनियाँ गूँज उठीं। कसाल, ताल और afs की आवाजें होने लगीं । कोलाहल और काहल का शब्द हो रहा था। इसी प्रकार माउन्द बाघ की ध्वनि हो रही थी । घुम्मुक करट और टिबिल वाद्य भी उसमें थे । झल्लरी रुखा और डमरुक वाद्य, सेना के हाथ में थे । प्रतिढक्क और हुदुक्क बज रहे थे। घूमते हुए मतवाले गज गरज रहे
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