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[ ३ ] दोनों सेनाएँ आपस में टकरा गयीं। दोनोंमें भयंकर युद्ध हुआ । कुण्डल, कटक, मुकुट और सोनेके सूत्र टूट-टूटकर गिरने लगे। मारो मारो की भयंकर ध्वनि हो रही थी । धनुष और प्रत्यखा की छन छन ध्वनि ही रही थी । धनुष-समूह कड़मड़ा रहे थे। तीरोंका समूह 'घर घर' कर रहा था। तीखी तळकारें खनखना रही थीं! चंचल अश्व हिनहिना रहे थे । विशाल गज गरज रहे थे । श्रेष्ठ योद्धा "मारो मारो” चिल्ला रहे थे । भयंकर शव और शरीर दौड़ रहे थे। रक्तकी धारा उछल रही थी । पैर कट रहे थे और हाथ टूट रहे थे। सिर गिर रहे थे । धड़ नाच रहे थे । अश्व, ध्वज, छत्र और दण्ड झुक चुके थे। ऐसे उस युद्ध में, रणभार में समर्थ, रावणका अनुचर, हाथमें धनुष बाण लेकर तैयार हो गया । सिंहार्ध सफेद सिंहों के रथपर चढ़ गया । सन्तापकारी वह मारीचके साथ, युद्ध में जा भिड़ा ।। १-१०।।
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[४] दोनों रथों में सिंह जुते हुए थे। दोनोंकी ध्वजाओंपर सिंह के चिह्न थे। दोनोंके हाथ में धनुष थे। दोनों ही विश्व विख्यात थे। दोनों ही यशके लोभी विरुद्ध और क्रुद्ध थे । दोनोंका ही वंश बल और विशुद्ध था। दोनों ही देवांगनाओंको आनन्द देनेवाले थे। दोनों हो सज्जनोंमें उत्तम और शत्रुओंके संहारक थे। दोनों ही महान थे और युद्धका भार उठाने में समर्थ थे। दोनों ही जिनशासनमें भक्तिरत थे। दोनों ही अजेय और विजयलक्ष्मीके आश्रय थे। दोनों ही बिनतजनोंकी आशा पूरी करने वाले थे। दोनों ही निशाचर राजाओं में श्रेष्ठ थे, दोनों ही क्रमशः राम और रावणके लिए इष्ट थे। दोनों ही तीरोंसे युद्ध कर रहे थे। वे ऐसे लगते थे मानो नदी मुखोंसे पहाड़ आपस में प्रहार कर रहे हैं । भय-भयंकर सन्तापकारी