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वासटिमो संधि राजकुम्भ उसमें कुम्भराशि होगी, धनुष, धनराशि, वह धनुच जो दुर्वार तीरोंको धारण करता है, मनुष्य श्रेष्ठ जिसमें नक्षत्र होंगे 1 गजेन्द्र, ग्रह और योद्धाओंके धड़ाके खण्ड राशिके समूह होंगे। लड़ते हुए योचा और सामन्त दिन होगे एवं सेनाएँ उत्तरायण और दक्षिणायनकी जगह समझिए। तथा महारथोंको संक्रमणकाल समझना चाहिए | रावण ऋद्धमन राहु है। राम और लक्ष्मण रूपी सूर्य-चन्द्रका ग्रहण होगा । अश्य और रथ टकरा जायेंगे, परन्तु मैं कहीं भी नहीं ठहरूँगा, मैं धूमकेतु की तरह उलूंगा और सबका नाश कर दूंगा |१-२॥
[१३] इस योद्धाके ये शब्द सुनकर रावणकी भुजाएँ खिल गयीं और आँखें प्रसन्न हो उठी। वह स्वयं अपना शृंगारकर बाहर निकला, और शीघ्र ही उसने अपने अन्तःपुरमें प्रवेश किया। वह अन्तःपुर जिसमें नूपुरॉकी झंकारके स्वर गूंज रहे थे, करधनियोंके समूहसे जिसमें कम्पन हो रहा था। मणि, कटक,मुकुट, चूड़ा और आभरणोंसे जो भरपूर था । जो श्रीहार की चमकके भारसे उद्वेलित हो रहा था। जो कुण्डल और केयूर से विभूषित था, और विभ्रम विलाससे अधिविलसित था। जिसमें मुख चन्द्र के समान, नेत्र मृगके और गति हंसके समान थी । ऐसे उस अन्तःपुरमें रावणने ऐसे प्रवेश किया मानो भ्रमरियोंके बनमें भौंरेने प्रवेश किया हो। उत्तम अंगनाआँके उन शतदलोंको उसने चूम लिया, जिनसे दूर-दूर तक कपूरकी गन्ध उड़ रही थी। उद्दीपन रूपी केशरके वश में होकर, वह कामक्रीड़ाके रसका पान करता रहा। इस प्रकार वह अन्तःपुरमें विहार करता रहा। इतने में सूर्योदय हो गया । हस्त-प्रहस्तके उस युद्ध में जो मरे हुए योद्धा उठकर नहीं दौड़ सके, उससे लगा मानो महाकाल भोजनकी इच्छासे आया हो ।।१-१०॥