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सालटिना संधि रहित सूर्य हो, माना सूर्य चन्द्रसे विहीन आकाश हो, मानो इन्द्र और प्रतीन्द्रसे रहित स्वर्ग हो, एक ओर नगाड़े और शंख निःशब्द थे, और दूसरी ओर लानों तूर्य बज रहे थे। एक ओर सेनामें हाहाकार मचा हुआ था, दूसरी ओर जय-जय ध्वनि गूंज रही थी। इस ओर आकाशमें सूरज डूब गया, मानो वह हस्त और प्रहस्तका मित्र था। लड़ती हुई वे सेनाएँ रातमें भी नहीं हट रही थी। सैकड़ों भूखे भून युद्ध में भोजनके लिए एक दूसरेको पुकार रहे थे ।। १-९॥
__ वासठवीं सन्धि हस्त और प्रहस्तके मारे जाने पर, दोनों सेनाएँ अलगअलग हो गयीं। ठीक उसी तरह, जिस तरह कार्य पूरा हो जाने पर शिथिलशरीर, दम्पति अलग हो जाते हैं।
[१] रायणने अपने आवासमें प्रवेश किया। राम और लक्ष्मण भी, युद्धभूमिसे बाहर आ गये । ठीक इसी समय विश्वमें विख्यातनाम नल-नीलने आकर, रामका अभिवादन किया। रामने भी नीलको बहुरत्न मणियोंसे समुज्वल मणि कुण्डल प्रदान किये। दूसरे नलको 'भी मणियोंके प्रकाशसे चमकता हुआ मुकुट दिया। यह मुकुट रामपुरीमें उन्हें यक्षने भेंट किया था। राम जब उन दोनोंका सत्कार कर चुके तो जाम्बवने पंचन्यूहकी रचना की। मनुष्य दाँय तरफ थे, और अश्व बायें तरफ। गज पूर्व दिशामें और पश्चिम भागमें रथ खड़े थे। उन्होंने आकाशमें विमानोंकी रचना कर डाली। राम और लक्ष्मण सिंहासनके अग्रभाग पर विराजमान थे। वह न्यूड देवताओंके लिए भी अभेद्य था। ऐसा जान पड़ता था