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एकसहिमो संधि
७५ कामदेवने आहत कर दिया हो । शत्रुरूपी मृगोंका झुण्ड भटकता हुआ भाग्यसे कहीं भी जा पड़े, वह बच नहीं सकता। रामरूपी सिंहकी झपेटमें पड़कर आखिर वह कहाँ जायेगा ।। १- ||
[ ] इसी अन्तरमें सेनाको अभय वचन देकर हस्त और प्रहस्त दोनों आकर इस प्रकार खड़े हो गये. मानो प्रलयमें चन्द्र और सूर्य जादत हुए हों, था अत्यन्त ऋर राहु और केतु हों, या पवनाहत प्रलयकी आग हो, या मदसे गीले महागज हों या पुलकित शरीर सिंह हो, या गम्भीर और विशाल प्रलय कालीन समुद्र हो । दुार शत्रुओंका संहार करनेवाले आक्रमण शील हथियारों, आग्नेय वायव्य अत्रों, शिलाओं, पत्थरों, पर्वतों और वृक्षोंसे वे योद्धा जहाँ भी जा भिड़ते वहाँ लोगोंके मन खिन्न हो बठते । रामकी सेना ठहर नहीं पा रही थी। वह व्याकुल होकर अपने प्राणों के साथ नष्ट होने जा रही थी, नल और नील दोनों आ पहुँचे । मानो विशाल गजसे विशाल गज या सिंहसे सिंह भिड़ गया हो। नल हस्तसे, और प्रहस्तसे नील भिड़ गये, एकदम पुलकित और अस्त्र सहित ।। १-६॥
[१०] नल और हस्त युद्धस्थलमें एक दूसरेसे भिड़ गये, दोनों गजरथों पर चढ़ गये। दोनोंके गज और ध्वज अभंग थे। दोनों ही प्रसिद्ध थे और उन्होंने विजय प्राप्त की थी। दोनोंकी भौंहोंसे मुख कुटिल हो रहा था। दोनोंकी आँखें मूंगे की तरह लाल हो रही थीं। दोनों ही प्रचण्ड धनुष धारण किये हुए थे। दोनों ही तीरोंको अनवरत बौछार कर रहे थे। दोनोंने ही धनुर्विज्ञानकी विद्यामें अन्त पा लिया था। दोनों सौ-सौ बार ध्वजोंके टुकड़े कर चुके थे। दोनों ही युद्धके प्रांगणमें असहनीय थे। दोनों ही को सौ बार विरह हो चुका था, दोनों ही नये रथों में बैठे हुए थे, दोनोंकी देवता प्रशंसा
आ पहुंचे। माना होने जा
या सिंहसे