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सहिमा संधि [२] रामकी से नाके कूच करते ही, योद्धा रोमांचसे उछल पड़े । आकाश में प्रसन्नमन देवबालाओंकी आपसमें बातचीन होने लगी। एक ने कहा, 'कौन-सी सेना ठहर सकती है ?' उसका ही उत्तर था, 'वही सेना टिक सकती है, जो स्वामी के लिए अपने सिरको भी कुछ न समझे ।' किसीकी सेनामें विशाल विमान थे जो स्वर्णगिरिकी समानता रखते थे ! किसीमें कवच पहने हुए अश्वघटा थी। किसीमें अंकुश छोड़ देने बाली इस्तिघटा थी। किसीमें असह्य तोरोंकी माला थी। किमीमें पहाड़की भाँति विशाल रथ थे। किसी के पास रथ. कुशल सारथि थे। किसी में अतुल बल सेनापति थे। किन्हींके पास भयंकर हथियार थे, और किसौके पास निरन्तक पताकाएँ थीं। कोई युद्धके आँगनमें तोरोंका आलिंगन कर रहा था । देखें, राम और रावणमें, जयश्री पर कौन अधिकार करता है, ।। १-६॥
१०] एक दूसरी विशाल नेत्रवाली देवचालाने कहा, "हे. सखी, दोनों ही सेनाएँ अतुल बल रखती है, दोनों में कोलाहल बढ़ रहा है। दोनों ही ईर्ष्या से भरी हुई पर हो रही हैं, दोनों के हाथोंमें दारुण अस्त्र हैं। दोनों ही आमने-सामने जा रही हैं। दोनों सेनाओं के अश्व कवच पहने हुए हैं। दोनों में गजसेनाएँ गरज रही हैं, दोनोंके ध्वजपट पवनमें उड़े जा रहे है। दोनों में रथ जुते हुए हैं, दोनों ही देवताओंके नेत्रोंको आनन्द देनेवालि हैं, दोनों ही सारथियोंके कारण दुर्दर्शनीय हैं। दोनों ही सेनापतियोंके कारण भीषण हैं, दोनों ही छत्रोंके समूहसे हकी हुई हैं, दोनों ही योद्धाओंकी भौंहों से भयंकर हैं। दोनों ही सेनाएँ उस महायुद्ध में एक दूसरेके समान थीं। इसलिए कहना कठिन है कि जीत किसकी होगी रामकी, या रावणकी ।।१-२||