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सहिमो संधि
[११] यह सुनकर अत्यधिक ईसे भरी हुई एक दूसरी अप्सराने उसे डाँट दिया, "जहाँ युद्धभार उठाने में अग्रणी, कुम्भकर्ण है, जहाँ भीमनिनाद के साथ भीम हैं, जहाँ मय, मारीची, मुमालि, मालि है, जहाँ तोयदवाइन जम्बुमालि है, जहाँ अर्ककीर्ति, मधु और मेघनाद हैं, जहाँ मकर और भीमकाय महोदर हैं, जहाँ हस्त-प्रहस्त और महस्त जैसे वीर है, जहाँ धीर धुन्धु और बुग्घुधाम हैं, जहाँ शम्भू,स्वयम्भू निशुम्भ
और शुम्भ है, जहाँ सुन्द-निमुन्द, निकुम्भ और कुम्भ हैं। जहाँ सिंहनितम्ब, प्रलम्बबाहु, डिण्डिम, डम्बर और नक्रयाह है, जहाँ समा, यम और सिंह : जहाँ मायन और विद्युत् जिस हैं। जहाँ श्रृतसारण, पञोदर और हालाहल हैं, रावणकी उस सेनामें रामकी सेनाको क्या पकड़ हो सकती है।। १-२ ।।
[१२] यह सुनकर एक और देवांगनाका चेहरा तमतमा उठा। उसने आवेशमें आकर कहा,"जिस सेनामें विट सुप्रीषको मारने वाले राघव हों, जिस सेनामें गवय, गवान, विवक्ष और वहन हों, जिस सेनामें खरदूषणका नाश करनेवाला लक्ष्मण और जयश्रीका निवास स्वरूप भामण्डल हो, जिस सेनामें अंगद, अंग, सुसेन और तार हों, जिस सेनामें नील, नहुष और दुनिवार नल हों, जिस सेना में अहिमुख, दृधिमुख, मतिसमुद्र, मतिकान्त, विराधित, कुमुद और कुन्द हों, जिससेनामें जम्बुक, जम्बब, रत्नकेशी हों, जिस सेनामें कौमुदीचन्दन, चन्दराशि हो, जिस सेनामें नन्दनवनके लिए कृतान्त हनुमान हों, जिस सेनामें रम्भ, महेन्द्र और विहीसवन्त हों, जिस सेनामें शूल हाथमें लेकर सुभट विभीषण हों,और जिस सेनामें सुग्रीव स्वयं सेनापति हो, हे सखी, निश्चय ही वह सेना, सिर्फ इतना ही करेगी कि रावणको धराशायी बनाकर लंकाका स्वयं भोग करेगी।।१-२॥.
घणका भो , जिम
और दुनिः