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एकस हिमो संधि
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और शत्रुपर इमला बोल देता । कोई एक योद्धा जब अपना कदम आगे बढ़ा देता तो पीछे कदम नहीं रखता । एक और योद्धा रण प्रांगण में सहसा आपेसे बाहर हो उठता और शत्रुसैन्य- रथों पर कूद पड़ता। कोई एक योद्धा, शत्रुको पकड़कर खींच रहा था । पल-पलमें उसका परितोष बढ़ रहा था। कोई एक योद्धा तीरोंसे आहत होकर जब रथोंपर जाकर गिरता, तो ऐसा लगता कि किसी मकानपर बिजली टूट पड़ी हो । कोई योद्धा तीरों की बौछारमें अवरुद्ध हो उठता, मानो आचार्यजीने नरक में जाते हुए किसी जीव को रोक लिया हो ।" किसी एक योद्धाने गजको मारकर उसके मस्तकको वीर डाला, और उसमें कुन्दके समान स्वच्छ, जितने भी मोती थे, वे सब अपनी पत्नीको उपहार में देनेके लिए निकाल लिये || १-२ ।।
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[ ३ ] किसी एक योद्धाने स्वर्णदण्डमें लगी हुई ध्वजाओंके अगले हिस्सेको फाड़ डाला। जिस योद्धाको अपनी पत्नीका आदर नहीं मिला था, उसने युद्ध में रक्तसे अपना शृंगार कर लिया। जो अपने घर में मुखपर पत्र रचना नहीं कर सका उसने युद्ध में शत्रुओंको बिछाकर अपना शौक पूरा किया। जिस योद्धाने बहुत समय तक दर्पण नहीं देखा था, उसने रथमें अपना मुख देख लिया। जिसने अभी तक अपने मुख में एक भी पान नहीं खाया था. उसने सैकड़ों धड़ोंको, युद्धमें नचा दिया। जिस योद्धाको अभीतक प्रेमकीड़ाका अवसर नहीं मिला था, उसने रणबधूके साथ अपनी इच्छा पूरी की। जिस योगाने आजतक अपनी स्त्रीकी कामना नहीं की थी, उसने जी भर गजघटका आलिंगन किया। जो अपनी स्त्रीके लिए नख तक नहीं देता था उसे युद्धभूमि में आज युद्धवधूने फाड़ डाला ।