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एकसटिमो संधि
इकाली सन्धि तूर्य बज चठे। कलकल होने लगा। यशकी लोभी और अमर्षसे भरी हुई, राम और रावणकी सेनाएँ वेगके साथ एक दूसरेसे जा भिड़ी।
[१] केवल एक चैदेही के लिए, राम और रावणकी अतुल बलशाली सेना एक दूसरेसे भिड़ गयी। ऐसा जान पड़ रहा था मानो युगान्तमें धरती और आकाश, दोनों ही आपसमें भिड़ गये हों । सेनाओंके पास बिजलीके वेगवाले विमान थे । पट-पटह और भेरीकी गम्भीर ध्यान गूंज उठी। आवेशमें सेना एक दूसरेपर टूट पड़ रही थीं। चट्टाने,पत्थर,पेड़ और पहाड़ उनके हाथ में थे। कुछ सबल, हुलिहल और तलवार लिये थे। कुछ सैनिक विशाल गदा निकालकर उसे घुमा रहे थे। सिंहनाद सुनकर गजमाला गरज रही थी। मुड़ते हुए रथोंक अश्व हिनहिना रहे थे । सफ़ेद छत्र और ध्वज हिल-डुल रहे थे। सैनिक अपने प्राणोंका भय छोड़ चुके थे। घावों ओर संघर्षकी उन्हें रत्तीभर भी परवाह नहीं थी। वे एक दूसरे के सम्मुख पग बढ़ा रहे थे। इस प्रकार वे सैकड़ों बार अपनी जीत की घोषणा कर चुके थे। दोनों सेना प्रतापी थी। दोनों धनुपपर तीर रखकर चला रही थीं। मानो वे आपस में भिड़नेके लिए ही बनी थीं, ठीक उसी प्रकार, जिसप्रकार शब्दरूप और क्रियारूप, आपस में मिलने के लिए निष्पन्न होते हैं ।।१-५॥
[२] सचमुच वह भयंकर युद्ध केशर, टेसू और रक्तकमलकी तरह लाल हो चठा। फिर भी, उसमें कोई भी योद्धा अपने प्राणों की परवाह नहीं कर रहा था। वे बार-बार, तीरों के सम्मुख अपना शरीर कर रहे थे । कोई एक योद्धा उठता