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एकुणसहिमो संधि
वायव एवं वन लिये हुए थे । इसी बीच में योद्धाओंको चकनाचूर कर देनेवाले रावणके पुत्रोंके रथ निकले । वे युद्ध में हर्षसे उछल रहे थे। विमानों में बैठे थे, ध्वजों पर राक्षस अंकित थे। इन्द्रजीत मेघ-वाहन आदि ढाई करोड़ श्रेष्ठ पुत्र थे ॥१-१०॥
[१०] युद्धिभूमिमें पहुँचकर रथ खचाखच भर गये। सेना पचास योजनके विस्तारमें फैलकर ठहर गयी । विमानसे विमान, छत्रसे छत्र, ध्वजाप्रसे ध्वजाप, चिह्नसे चिह्न, गजेन्द्रसे गजेन्द्र, सिंहसे सिंह, अश्वसे अश्व, बाघसे बाघ, जनानन्ददायक रथसे रथ, नरेन्द्रसे नरेन्द्र, योद्धासे योद्धा, त्रिशूलसे त्रिहाल, खड्ग से खग, इस प्रकार सेनासे सेना भिड़ गयी। किसी प्रदेशमें शूरवीर विसूर रहे थे । बहुत समय तक चलनेवाले उस युद्ध में वीर लक्ष्मी ऐसी जान पड़ रही थी, मानो वह नित्य या शाश्वत हो । किन्हीं भागोंमें रथोंके जमावसे इतना अँधेरा हो गया था कि योद्धा सूर्यकान्त मणियोंकी सहायतासे दूसरेको देख पाते थे। जिस सेनामें चार हजार अम्झौहिणी सेनाएँ हो, भला किसकी शक्ति है कि उसका समूचा वर्णन कर सके ।। १-२ ।।
रावणने, हस्त और प्रहस्तको आगे कर, अपनी दृष्टि तलवार पर डाली । वह ऐसा लग रहा था, मानो क्षयकाल ही जगत से रुष्ट होकर युद्धभूमि में आकर स्थित हो गया हो ॥१०॥