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सहिमो संधि
५७ और चन्दर अंकित थे। किन्हीं ध्वजोपर घन, बिजली, वृक्ष, कमल और वन्न अंकित थे। किन्हीं ध्वजोंपर सुंसुकर, हाथी, मगर और मछली अंकित थीं। किन्हीं पताकाओंमें नक्र, माह
और कच्छप अंकित थे। नील नल नहुष रतिमंद हस्ति-उद्भव जम्बु जम्बूक्क अम्मोधि जब जम्भव पत्थक पित्थ प्रस्तार दोदर पृथुल पृथुकाय भ्रूभंग और उद्भगुर । ये राजा गजरथोंमें बैठकर ऐसे आये मानो रावणके सामने संकट ही आ गया हो ॥१॥
[६] कुमुदावर्त, महेन्द्रमण्डल, सूरसमप्रभ, भानुमण्डल, रतिषर्धन, संग्रामचंचल, दृढ़रथ, सर्वप्रिय, करामल, मित्रानुद्धर, और व्याघ्रसूदन ये राजे व्याघ्ररथ पर आसीन थे। क्रुद्ध, दुष्ट, दुष्प्रेक्ष्य, रौरव, अप्रतिघात, समाधि भैरव, प्रियविग्रह, पंचमुख, कटितल, विपुल, बहल, मकरधर, करतल, पुष्य चन्द्र, चन्द्राश्रु
और चन्दन ये गजे सिंहरों पर थे। तिलक, तरंग, सुसेन, मनहर, विद्यत्कर्ण, सम्मेद, महीधर, अंगंगद, काल, विकाल, शेखर, तरल, शील, बलि, चल और पयोधर, ये राजे अश्वरथों वाले थे, ये ऐसे लगते थे मानो कि दुष्ट महामह ही निशाचरों पर क्रुद्ध हो उठे हों ॥ १-२ ।।
[७] चन्द्रमरीची, चन्द्र, चन्द्रोदर, चन्दन, अहित, अभिमुख, गयय, गवाझ, दुक्ख, दशनावली, दामुदाम, दचिमुख, हेड, हिडिम्ब, चूड, चूडामणि, चूडावर्त, वर्तनी, कन्त, वसन्त,