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दिनांक २९-५-१९१२ नागेल में लिखते है :
"तुम स्वयं क्या कर सकते हो, वह कर के दिखाओ । महज डिंगे हाँकने से अथवा पत्तों का महल बनाने से काम नहीं चलेगा । तुमने अपने जीवन में जो - जो कार्य करने का निर्धार किया है, उसको प्रतिलक्षित कर अपने कार्यों को कार्यन्वित करने के लिए मुस्तैदी से लग जाओ ।''
दिनांक १४-९-१९१२ अहमदाबाद में लिखते है :
"आज से आत्मा के मंद वीर्य को उत्कृष्ट वीर्य में परविर्तन करने हेतु प्रयत्नशील हूँ । मैं परम वीर्यमय हूँ और स्व अधिकार से प्राप्त मेरे परमवीर्य को प्रकरित करने हेतु प्रयत्नशील हूँ.... लाथ ही मैं दृढ़ संकल्प करता हूँ कि, जनि संयोग व हेतुओं की सामग्री प्राप्त कर आत्मा का परिवर्तन परमात्मा में होता है, एमे संयोग व हेतुओं की मामग्री मुजे शीघ्रातिशीध्र प्राप्त हो.... !''
दिनांक १५-९-१९१२ अहमदाबाद में लिखते है :
“अभी भी मैं भूल का पात्र हूँ । वैसे ही दूसरे जीव भी भूल के पात्र हैं । अतः अन्य जीवों पर यदि निज आत्मा की भाँति समान दृष्टि नहीं रखी हो और उन्हें हमेशा हिफारत भरी नजर से देखा हो तो हे वीतराग भगवान ! मेरी अक्षम्य भूल के लिए आप से क्षमा याचना करता हूँ ओर भविष्य में सभी प्राणायों के प्रति आत्म-दृष्टि वत व्यवहार करने का दृढ़ संकल्प करता हूँ.....''
__ श्रीमद्जी ने अपनी डायरी के कुछ पृष्टों पर काव्य-पंक्तियाँ भी अंकित की हैं। आत्मा में अथाव प्रमे में सराबोर हो, दिनांक २२-९-१९१२ अहमदाबाद में आपने लिखा है :
____ "ज्यां ज्यां विभूति आपनी त्यां प्राण मारा पाथरूं, तव नाम पियुष पी जणुं आनन्द थी हसतो फळं |माझं हृदय सोप्यु तने ए प्रेममा अर्पण सहं । तारा विना साक्षी नथी ताग विना रहेवू नथी, तारा विना वदवू नथी तारा विना जोवू नथी । माझं अने तळं अरे ए भेद पग भूली गयो, आजेय ने आजार तुं जिनराज तुं ध्याने रह्यो।'
एसी बिलकुल निजी एवं अपनी विविध प्रवृतियाँ, भावनाएँ, संकल्प व क्षमापना की टिप्पणियों के उपरांत कई स्थानों पर विहार आते प्राकृतिक दृश्यों का मनोरम वर्णन, पटित पुस्तक व ग्रन्थों का स्वयं पर पडे प्रभाव....असर, समाज के गनष्टि सेवकों के देहांत की आलोचना के साथ-साथ उनके गुण प्रशंसा की यथायोग्य .गंद भी ली गयी है ।
लेकिन सर्वाजिक ध्यान खिंच लेती उनके द्वारा निरुपित समाज संम्बंधित हित चितन की विचारधारा जैनों की कम होती आबादी. जैनों की निष्प्रम होती प्रतिभा व गौरव गाथा, जैनों में धुसपैठ कर गये पारम्परकि गग-द्वेष व कलह, जैन समाज
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