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५०. शुभ संस्कार
अपनाइए
अज्ञानवस्था के कारण ऐसे सूक्ष्म तथ्यों को नहीं समझनेवाले जीव एकाध बालक की माँति बाल बृद्धि से उक्त पदार्थों की इच्छा व्यक्त कर कुसंस्कारों को जन्म देते है। - श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
पादरा दिनांक : २७-३-१९१२
अपने मन में किसी तरह की कामना प्रकटित करने के पूर्व बहुत - बहुत विचार करें..... खूब सोचे और समझे । वैसे ही कामना प्रकट कर तदनुसार आचरण करने की प्रवृत्ति तो असंख्य विचार कर प्रवर्तित करने की आवश्यक्ता है।
पंचेंद्रिय विषयक विषयों के सम्बन्ध में स्वमति अनुसार जो-जो कामनाएँ .. इच्छाएँ संजो कर तद्नुसार प्रवृत्ति की जाती है । हालाँकि उक्त प्रवृत्ति का त्याग किया जाता है । फिर भी तथाकथित इच्छा के मतियोग से उत्पन्न वासना के योग में प्रवृत्ति का त्याग होने पर भी स्वप्नादि में वासनाओं के विपरीत प्रवृत्ति दिखाई देती है । वास्तव में राग-द्वेष के संस्कार स्वप्न में भी पीडित करने में समर्थ होते हैं।
मन के व्यापार द्वारा राग-द्वेषादि संस्कार या काम-वासनाओं की उत्पत्ति न हो, इसकी हमेशा सावथानी बरतनी चाहिए और पहले से ही विवेक, ज्ञानोपयोग से आचरण करना चाहिए। हिंसा, झूट, व्यभिचार, निंदा, विषयवासना, शोक, इर्ष्या, क्रोध, मान, माया. लोभ एवं मिथ्यात्व आदि का विचार करने पर उक्त दुर्गुणों के संस्कार आत्मा में उत्पन्न होते हैं ओर वेही संस्कार वास्तव में अकल्पित रूप से स्वप्न में भी अनायास ही प्रकट होते हैं, जो कर्म की वर्गणाओं का आत्मा के साथ सम्बन्ध प्रस्थापित कराते हैं ।
___ काया के माध्यम द्वारा हमने जिन-जिन पदार्थों का भोगोपभोत्र किया हों, उनके मंग्कार तो मानव-मन की गहराई में इस कदर अड्डा जमा लेते हैं कि भले ही उनका भोग व उपभोग नहीं भी किया हों, फिर भी स्वप्न रूप धारण कर पुनः स्मृति में साकार होते हैं और नानाविध कर्म बंधन कराते हैं।
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