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ज्ञानी संतजनों की एकाध पल की संगति जो लाभ प्राप्त करने में समर्थ होती है, इतना लाभ करोडों अज्ञानी जीवों की संगति से भी प्राप्त नहीं हो सकता।
आयु एवं वेष से कभी पूज्यत्व प्राप्त नहीं होता। वैसे ही सद्गुणों के बिना आयु व लिंग मात्र से कभी पूज्यता प्राप्त नहीं हो सकती। _ सत्ता एवं लक्ष्मी के धारक यदि विनय, विवेक गांभीर्य, उदारता, दयालुता व भक्ति आदि सदगुणों से विरहित हों तो वे अन्यजनों को अनेक प्रकार की उपाधि प्रदान करने में समर्थ सिद्ध होते हैं।
विविध लोगों के विभिन्न मत परिलक्षित कर सहनशीलता धारण करनी चाहिए। यदि विभिन्न मत मतान्तर धारकों के प्रति द्वेष-भाव रखा जाए तो सत्यधर्म पालनार्थ आग्रही के मन में शांति कदापि प्रस्थापित नहीं होती। अरे, मत-सहिष्णुता नामक गुण धारण किये बिना विश्व के प्रत्येक मनुष्य के साथ सुख-शांति से रह नहीं सकते।
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