________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६५. निश्चय और
व्यवहार नय
आत्मिक सद्गुणों का प्रकाश फैलाने में प्रवृत्ति करने पर मनुष्य सही अर्थ में आराधक बन सकता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में सद्गुण धारण करता है, उसका व्यवहार अपनेआप सुशोभित होता है। -- श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
पादरा दिनांक : १६-४-१९१२
जहाँ महज नीति विषयक उपदेश के अनुसार आचार-विचार में सद्वर्तन नहीं होता, ऐसा व्यवहार हरमि व्यवहार नहीं कहलाता। कई लोग उपदेश देने व बातें बनाने में देव सदृश होते हैं। लेकिन यदि उनके आचरण की जाँच-पड़ताल की जाय तो ज्ञात होता है कि वह सिर्फ वाणी-वीर है। वास्तव में जिस व्यवहार में नीति का पुट नहीं होता, वह केवल व्यवहार हैं।
जो लोग एकाँतिक व्यवहार को पुष्ट मान, निस्वय धर्म का सरेआम तिरस्कार करता है, निस्संदेह उसे पेशावर व्यवहारिक की संज्ञा देनी चाहिए। व्यवहार व निश्चय नय के एकांतिक अनुरागी.... भिन्न रागी हो, खंडन-मंडन के दलदल में गिरने से कुछ हाँसिल नही होगा, ना ही कुछ प्राप्त होनेवाला है।
व्यवहार एवं निश्चय नय के प्रति श्रद्धा धारण कर सत्य, प्रामाणिकता व आदर्शवृत्ति जैसे सद्गुणों से जीवन श्रेष्ट बनाना चाहिए।
यदि कोई व्यवहार व्यवहार की रट लगाता रहे लेकिन मउज व्यवहार मान कर नैतिक सदगुणों से आत्मा को सर्वश्रेष्ट नहीं बनाता तो उससे कुछ होनेवाला नहीं है। वैसे ही कोई निश्चय निश्चय की अलख जगाता रहे, लेकिन नीति आदि सद्गुणों से निजात्मा को सर्वश्रेष्ट नहीं बनाता । ऐसा व्यक्ति निश्चय नय का एकांतिक पक्ष ग्रहण कर आत्महित साध नहीं सकता।
आत्मिक सद्गुणों का प्रकाश फैलाने में प्रवृत्ति करने पर मनुष्य सही अर्थ में आराधक बन सकता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में सद्गुण धारण करता है, उसका
१२८
For Private and Personal Use Only