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६२. युग को पहिचानो
वस्तुत : वर्तमान युग आगेकूच करने का है, बल्कि हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने का नहीं है। अरे, जो प्रयत्न करता है, वही सिकन्दर होता है। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
बडोदा दिनांक : २२-४-१२
वास्तव में नव युग का प्रारम्भ नूतन विचारों से होता है । गतिशील युग में मानव को भी भाग-दौङ करनी चाहिए, बल्कि दुनिया की रक्ता में पिछडना नहीं चाहिए ।
पुराना सो सोना और नया सो पीतल ऐसी समझ से कभी काम नहीं लेना चाहिए । ठीक वैसे ही नया सो अच्छा और पुराना सो बुरा मानने की गलती भूल कर भी नहीं करनी चाहिए । पुराने में जो अच्छा है.... सत्य है, उसे ग्रहण कर अभ्युदय- मार्ग पर दृढ रह, निरंतर आगे बढते रहना चाहिए ।
पुराने व नये विचारों का प्रतिपादन करने हेतु अलग-अलग पंथ खड़े नहीं करने चाहिए बल्कि प्रायः नये-पुराने की तुलना करनी चाहिए और उन्हें जंजीर के अंकड़े की तरह तरतीब से लगाकर हमेशा उन्नति क्रम में आगे कदम बढाते रहना चाहिए । सभी सम्बन्धि विचारों को अपेक्षा अंकुडे से व्यवस्थित जोङ कर उनकी एक वैचारिक श्रृंखला बनानी चाहिए।
। वस्तुतः वर्तमान युग आगेकूच करने का है, बल्कि हाथ पर हाथ धरे बैढ रहने का नहीं है । जो सिर पर हाथ रखे बैढ रहता है, उसका भाग्य भी बैढ जाता है और जो गतिशील है. उसका भाग्य प्रायः गतिशील होता है । अरे, जो प्रयत्न करता है वही सिकन्दर होता है ।
नये पुगने विचारों के मतभेद में उलझ ने बजाय उनके प्रति सहिष्णुता वृत्ति धारण कर सभी लोगों में रहे सामान्य विचारों में जुड़ कर कार्यों को अंजाम देना
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