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सुख की स्पृहा (चाह) अपनेआप छूट जाती है ।
पंचेदियों के साथ जब निस्वार्थ भाव से विश्व के श्रेय : हेतु मन जुडता है और पारमार्थिक कृत्य संपन्न होते हैं, तब अनायास ही निष्काम कर्मयोगी की अवस्था प्राप्त होती है ।
.. अलबत्त, पांच इंद्रियों का व्यापार हुए बिना नहीं रहता, ऐसी स्थिति में यदि कर्म-बंधन न हो, इस तरह निखालिस मन से कार्य को अंजाम दिया जाय तो उसके फल स्वरुप विश्व एवं स्वयं की उन्नति अवश्य कर सकते हैं ।
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