Book Title: Path Ke Fool
Author(s): Buddhisagarsuri, Ranjan Parmar
Publisher: Arunoday Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 140
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुख की स्पृहा (चाह) अपनेआप छूट जाती है । पंचेदियों के साथ जब निस्वार्थ भाव से विश्व के श्रेय : हेतु मन जुडता है और पारमार्थिक कृत्य संपन्न होते हैं, तब अनायास ही निष्काम कर्मयोगी की अवस्था प्राप्त होती है । .. अलबत्त, पांच इंद्रियों का व्यापार हुए बिना नहीं रहता, ऐसी स्थिति में यदि कर्म-बंधन न हो, इस तरह निखालिस मन से कार्य को अंजाम दिया जाय तो उसके फल स्वरुप विश्व एवं स्वयं की उन्नति अवश्य कर सकते हैं । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149