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६०. शिक्षा का उद्देश्य
सुसंस्कृत बनाना
कौए और कुत्ते के बच्चों की तरह किसी भाषा में गिट-पिट करने मात्र से ही किसी को शिक्षित मान लेने की भूल कभी नहीं करनी चाहिए। - श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
बडौदा दिनांक : ६-८-९३
जो शिक्षा ग्रहण करने से राष्ट्र में सद्गुणी लोगों की उत्पत्ति होती है, वास्तव में वही शिक्षा सर्वमान्य हो, उत्तम कहलाती है ।
. . जिस राष्ट्र में विषय-वाल नादि को उत्तेजन देनेवाली शिक्षा प्रदान की जाती हो, ऐसा राष्ट्र अध : पतन के गहरे गर्त में गिरकर ही रहेगा।
सामान्यतः दया, भक्ति, पवित्र प्रेम, विनय एवं सदाचार विहीन शिक्षा को शिक्षा नहीं कहा जा सकता ।जिसके सुविचार रूपी मन विकसित न होने पाहँ , बढिया शब्द बोलने की आदत न पड़े और काया शुभ कार्यों में व्यापार युक्त न होवे उसे शिक्षा की संज्ञा नहीं दे सकते ।
- भूल कर भी ऐसा संकुचित अर्थ कभी नहीं लगाना चाहिए कि यदि भाषाज्ञान के बल पर लिखना पढना आ जाय, इसका मतलब वह शिक्षित हो गया है । वैसे ही स्वच्छदताचारी उदंड प्रवृत्ति करनेवालों की गणना भी शिक्षित व्यक्तियों में नहीं की जा सकती।
निज ह्रदय को अनेकविध सद्गुणों के माध्यम से विकसित करने पर वह सच्चे अर्थ में शिक्षित कहलाता है ।
मन, वचन व काया के योग को शभ मार्ग में प्रवर्तित करने की शक्ति जिसजिस अनुपात में प्राप्त होती है उसी अनुपात में संस्कारित उच्च शिक्षा कही जाती है।
___कौए और कुत्ते के बच्चों की तरह किसी भाषा में गिट-पिट करने मात्र से ही किसी को शिक्षित मान लेने की भूल कभी नहीं करनी चाहिए। वास्तव में उत्कट
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