Book Title: Path Ke Fool
Author(s): Buddhisagarsuri, Ranjan Parmar
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 135
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९. भाषा लोकोपकार के लिए संस्कृत ग्रंथो का गुजराती आदि प्रादेशिक भाषाओं में भाषांतर किये बिना यदि गत्यंतर नहीं हैं तो ऐसी अवस्था में संस्कृत में ग्रंथ- लेखन कर सिर्फ पांडित्य- प्रदर्शन करने की दृष्टि अपनाना, वस्तुतः उचित कार्य नहीं है, ना ही किसी तरह योग्य है । - श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी बडौदा दिनांक ८-४-१९१२ मस्तिष्क के कप्पे में किसी भी प्रकार की भाषा के शब्द संचित कर देने से कोई दार्शनिक नहीं कहलाता है । बल्कि संस्कृत भाषा को आत्मसात करनेवाला ही ज्ञानी माना जाता है । बैसे है गुर्जर भाषा का जानकार अथवा ग्रंथलेखन करनेवाला ही ज्ञानी ही सो बात नहीं हैं और नाही ऐसा कोई सिद्धांत है । किसी भी भाषा का ज्ञान अवगत करने के उपरांत भी ज्ञानी नहीं बना जा सकता । महज भाषा तो मनुष्य के ज्ञान रुपी वस्त्र हैं और ज्ञान के संकेत स्वरूपर जगत् में अनेकानेक भाषाएँ हैं। जिस देश में तत्कालीन परिस्थिति में जो भाषा जीवित... सार्वजनिक प्रसारण की एकमेव केन्द्र स्वरूप है । दूसरों को प्रतिबोधित करने के लिए उसी भाषा के माध्यम से ग्रंथ लेखन करने – कराने से पांडित्य की सतह में कभी नहीं आती । फलत : जैनाचार्यों ने इसी नियम... सिद्धांत को अपनाकर संस्कृत, प्राकृत व गुजराती आदि भाषाओं में प्रचुर मात्रा में ग्रंथलेखन किया है ।। किसी भी भाषा के माध्यम से सत्य तत्त्वों का उपदेश देना व कोई भी भाषा में सत्य तत्त्व मय ग्रंथ-सृजन करना ही पंडितवर्ग का वास्तविक पांडित्य है । संस्कृत भाषीय ग्रंथों का गुजराती आदि प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद... भाषांतर करना यदि अत्यावश्यक हो तो ऐसी अवस्था में संस्कृत भाषा में ग्रंथ-लेखन कर सिर्फ पांडित्य - प्रदर्शन करने की दृष्टि अपनाना, वस्तुतः उचित कार्य नहीं हैं, ना ही किसी तरह योग्य है । ११६ For Private and Personal Use Only

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