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५७. सद्गुण-चन्दन
ज्ञानी संतजनों की एकाध पल की संगति जो लाभ प्राप्त करने में समर्थ होती है, इतना लाभ करोड़ो अज्ञानी जीवों की संगति से भी प्राप्त नहीं हो सकता। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
बडौदा दिनांक : ५-४-१९१२
अमुक कारणों से कई बार कई लोग हमें प्रतिपक्षी....विरोधी प्रतीत होते हैं। फलतः उनमें रहे कितने ही सद्गुण भी दुर्गुण ही भासित होते हैं।
- अपने विरोधी होते हैं। फिर भी यदि उनमें रहे गुणों का मूल्यांकन कर उनकी (सद्गुणों की) सराहना की जाय तो सज्जनता कायम रहती है।
जब तक कोई व्यक्ति हमारा प्रतिपक्षी नहीं होता तब तक उसमें रहे दुर्गुणों को भी अन्यजनों के समक्ष सद्गुणों के रूप में प्रदर्शित करने का हम सतत प्रयत्न करते रहते हैं। लेकिन जैसे ही वह प्रतिकूल...विरोधी बन जाय तब उसके सद्गुणों को भी दुर्गुणों के रूप प्रसारित करने का प्रयल किया जाता है। जबकि ऐसे लोग भी होते हैं, जो प्रतिपक्षी के सद्गुण एवं दुर्गुण दोनों का मूल्यांकन करते हैं। लेकिन सर्वोत्तम व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थिति में भी निःस्वार्थ भाव से सब के सद्गुणों का सही मूल्यांकन करते हुए बार-बार उनकी प्रशंसा करता है।
वस्तुतः सद्गुणों का मूल्यांकन कर उनका मनन करने से आत्मा में प्रायः सद्गुणों का आर्विभाव होता है।
__ बालजीवों के प्रति सदैव गुणानुराग दृष्टि रहना प्रायः असंभव है।उत्तम पुरुष अनेक विपदा-वपित्तियाँ आने पर भी गुणानुराग दृष्टि धारण करते हैं। जबकि अज्ञानी जीव मोह-दृष्टि के संयोग से अनेक प्रकार के दोष निरीक्षण करने का व्यापार करते हैं ।
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