Book Title: Path Ke Fool
Author(s): Buddhisagarsuri, Ranjan Parmar
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 125
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४. काल का गणित चक्षु अप्राप्त ऐसे कई विषयों को ग्रहण करते हैं। वैसे ही योग्य देश (स्थान) में रहे हुए विषयों को भी ग्रहण करते हैं। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी पादरा दिनांक : २-४-१९१२ नैश्वक अथविग्रह एक समय का है। जबकि जघन्य से व उत्कृष्ट से इहा एवं अपाय का काल अंतमुहूर्त है। इसी भाँति व्यंजनाग्रह व व्यावहारिक अथविग्रह इन दोनों का काल भी अंतमुहूर्त है। ___ धारणाकाल संख्याता एवं असंख्याता काल का है। अंतमुहर्त की भी धारणा होती है। अविच्युति, स्मृति व वासना के भेद की धारणा तीन प्रकार की होती है, जिसमें से अविच्युति एवं ग्मृति स्वरूप धारणाकाल अंतमुहूर्त का है और जो धारणा तदर्थ ज्ञानावरणीय क्षयोपशम स्वरूप वासना नामवाली है, वह असंख्यता वर्ष के आयुष्ययुक्त जीवों की असंख्याता वर्ष की है। और पल्योपलादि असंख्याता जीवों के असंख्यता वर्ष की है। वासना एक प्रकार ये स्मृति के बीज स्वरूप है। श्रोतेन्द्रिय प्रायः स्पर्शित शब्दद्रव्य का ग्रहण करती है। जबकि घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय एवं स्पर्शेन्द्रिय आदि तीन इन्द्रियाँ स्पर्शित व आत्मप्रदेशों से गाढे चिपके हुए द्रव्य को ग्रहण करती हैं अर्थात् बद्ध एवं स्पष्ट ऐसे द्रव्यों को उपरोक्त तीन इन्द्रियाँ ग्रहण करती हैं। चक्षु अप्राप्त ऐसे कई विषयों को ग्रहण करते हैं। वैसे ही योग्य देश (स्थान) में रहे हुए विषयों को भी ग्रहण करते हैं। श्रोत्रेन्द्रिय यह विज्ञान पटता है और घ्राणादिक तीन तो पटतर विज्ञानत्व नहीं है। नयन लक्षादि योजन (जोजन) पर्यंत भलीभाँति देख सकते हैं। बारह योजन से आते मेघ-गर्जनादि ग्वा को श्रोतेंद्रिय अच्छी तरह ग्रहण करती हैं। घ्राणेन्द्रिय, १०६ For Private and Personal Use Only

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