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निर्बल अवस्था मन, काया एवं आत्मा की होती हे ।
प्रायः शारीरिक व मानसिक शक्ति संवर्धित कर उसका उपयोग आत्मा के गुणों को विकस्वर करने में करना चाहिए । किसी वस्तु विशेष का चिंतन करते हुए मन श्रमित हो जाय अथवा काया थकी हुई प्रतीत हो तो अमुक समय तक अवश्य विश्राम करना चाहिए।
जिनका मन मंदगतिवाला व निर्बल है उन्हें थकावट की अनुभूति होते ही फौरन विश्रांति लेनी चाहिए । वास्तव में विचार--यंत्र विद्युत-यंत्र के वेग मे अत्यधिक गतिशील होता है । अतः निरंतर चिंतनशील व्यक्ति अधिकाधिक श्रम करता है । परिणामतः उसे ज्यादा से ज्यादा आत्मभोग देना पड़ता है ।
चिंतनशील (विचारवान्) को प्रायः वीर्यादि का व्यय करना पड़ता है। अतः यदि वह निरंतर शांति के विचार करता रहे तो कई स्थानों पर शांति के विचार प्रसारित कर सकता है । अलबत्त, सच्ची शांति तो परभाव रमणता के परित्याग ये ही संभव है।
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