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में स्वरूप तेजोलेश्या का प्रयोग कर गोशालक को अत्यंत पीडित करने का प्रयत्न किया था। लेकिन उस समय महा कृपालु देवाधिदेव श्री महावीर भगवंत ने करुणा स्वरूप आत्म-शक्ति के बल पर शरीर के भीतर के एवं बाहर के पुद्गलों को सपान्तरित कर शीत लेशया के पुदगलों से तेजोलेश्या के पुद्गलों को शांत किया था।
दया अथवा कृपा के परिणाम वश शांतिकारक पुद्गल-प्रवाह को सम्मुख व्यक्ति पर प्रवाहित कर सकते हैं। क्रोधोदय के कारण ब्रह्माण्ड में प्रसारित उष्ण पुद्गलों का प्रसारण होता है... फैलाव होता है और उससे मनुष्य के द्रव्य व भाव प्राण की हिंसा परम्परागत की जाती हैं। अतः क्रोध के उदय को प्रतिबंधित करने में सदैव सावथानी बरतनी चाहिए।
वास्तव में शुद्ध प्रेम एवं शुद्ध कारण से क्रोध तथा क्रोधीजनों पर विजयश्री प्राप्त कर सकते हैं।
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